11 . संध्यानाथ , 12 . मेलनाथ : कलसाद्विपति श्री जालंधरनाथ के परम भक्त ये दोनों भाई यदुवंशी भाटियों की रावलोत शाखा के क्षत्रिय थे और जैसलमेर क्षेत्र के गांव जिणजियाणी के निवासी ।
श्री जालंधरनाथ : चमत्कार - लीला किसी बात पर ये दोनों आपस में झगड़ पड़े । युद्ध में हुई भ्रातृत्व की दुर्गति ने इनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया और इन्होंने धीणोदर के आसन पर जाकर सिद्ध गरीबनाथ से चीरा लिया और नाथ - पंथ में दीक्षित हो गये । फिर ये दोनों गिरनार पर्वत पर आकर घोर तपस्या में लीन हो गये , जिससे प्रसन्न होकर नाथजी ने इन्हें वर दिया । सेवग दौलतराम ‘ जलंधरगुणरूपक ' में वर्णन करता है
एक अज्ञात लेखक की संध्यानाथ विषयक टिप्पणी है कि श्री जलंधरनाथ “ सेवक भाई श्री संध्यानाथ जू की तो सिद्ध अजरामर अवस्था कर संग लीयै वरिवर्ते है अनेक जीवां रो उद्धार करै है घट घट रै विषै व्यापक है तीन स्थांनां रै विषे सर्वदा निवास है ज्यां स्थानां रौ ध्यान अष्ट प्रहर सेस महेस राखै है नव नाथ सिद्ध अनंत ज्यां करि पूजनीय है नाद मुद्रा रा दरसण से अनेक कामार्थीयां री कामना सिद्ध कर रय्या है ।
श्री जालंधरनाथ : चमत्कार - लीला किसी बात पर ये दोनों आपस में झगड़ पड़े । युद्ध में हुई भ्रातृत्व की दुर्गति ने इनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया और इन्होंने धीणोदर के आसन पर जाकर सिद्ध गरीबनाथ से चीरा लिया और नाथ - पंथ में दीक्षित हो गये । फिर ये दोनों गिरनार पर्वत पर आकर घोर तपस्या में लीन हो गये , जिससे प्रसन्न होकर नाथजी ने इन्हें वर दिया । सेवग दौलतराम ‘ जलंधरगुणरूपक ' में वर्णन करता है
एक अज्ञात लेखक की संध्यानाथ विषयक टिप्पणी है कि श्री जलंधरनाथ “ सेवक भाई श्री संध्यानाथ जू की तो सिद्ध अजरामर अवस्था कर संग लीयै वरिवर्ते है अनेक जीवां रो उद्धार करै है घट घट रै विषै व्यापक है तीन स्थांनां रै विषे सर्वदा निवास है ज्यां स्थानां रौ ध्यान अष्ट प्रहर सेस महेस राखै है नव नाथ सिद्ध अनंत ज्यां करि पूजनीय है नाद मुद्रा रा दरसण से अनेक कामार्थीयां री कामना सिद्ध कर रय्या है ।