13 . परमार - वंश : इतिहास - प्रसिद्ध परमार - वंश पर श्रीजालंधरनाथ की प्रसन्नता का उल्लेख करते हुए सेवग दौलतराम लिखता है -
चौहानों से पूर्व इस परमार - वंश का विशाल साम्राज्य था । इतिहास प्रसिद्ध है । कि धरणीवाराह ( बाड़मेर का परमार राजा ) ने अपने भाइयों में इस मरु - भूभाग को बाँट दिया , जिससे यह नवकोटि मारवाड़ ( मरु - भूभाग ) कहलाया । ' अनेक इतिहासकार वैसे इस विभाजन की घटना से सहमत नहीं हैं ।
जालोर के तोपखाने में लगे परमार - नरेश वीसल के शिलालेखानुसार यहाँ क्रमशः वाक्पतिराज , चन्दन , देवराज , अपराजित , विज्जल , धारावर्ष और वीसल नामक राजा हुए । यह अभिलेख सं . 1174 ( चैत्रादि 1175 ) , आषाढ़ सुदि 5 ( 25 जून , 1118 ई . ) , मंगलवार का है । इसमें वीसल की रानी मेलर देवी द्वारा सिंधुराजेश्वर के मन्दिर पर स्वर्ण - कलश चढ़ाये जाने का उल्लेख है । । । इसके बाद भी वि . सं . 1238 तक यहाँ परमार - वंश का शासन रहा , जिसका अंत कीर्तिपाल चौहान के हाथों हुआ ।
चौहानों से पूर्व इस परमार - वंश का विशाल साम्राज्य था । इतिहास प्रसिद्ध है । कि धरणीवाराह ( बाड़मेर का परमार राजा ) ने अपने भाइयों में इस मरु - भूभाग को बाँट दिया , जिससे यह नवकोटि मारवाड़ ( मरु - भूभाग ) कहलाया । ' अनेक इतिहासकार वैसे इस विभाजन की घटना से सहमत नहीं हैं ।
जालोर के तोपखाने में लगे परमार - नरेश वीसल के शिलालेखानुसार यहाँ क्रमशः वाक्पतिराज , चन्दन , देवराज , अपराजित , विज्जल , धारावर्ष और वीसल नामक राजा हुए । यह अभिलेख सं . 1174 ( चैत्रादि 1175 ) , आषाढ़ सुदि 5 ( 25 जून , 1118 ई . ) , मंगलवार का है । इसमें वीसल की रानी मेलर देवी द्वारा सिंधुराजेश्वर के मन्दिर पर स्वर्ण - कलश चढ़ाये जाने का उल्लेख है । । । इसके बाद भी वि . सं . 1238 तक यहाँ परमार - वंश का शासन रहा , जिसका अंत कीर्तिपाल चौहान के हाथों हुआ ।