🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

14 . सज्जन विनोद

14 . सज्जन विनोद । । म . मानसिंह ' जलंधर चंद्रोदय ' में सज्जन विनोद पर श्री जलंधरनाथ की शुभ दष्टि का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि “ पूर्व दिशा की ओर आए कन्नौज नगर में महाबलशाली राठौड़ - वंशीय पुंज ( नामक ) नरेश था । वह विशाल सेनाओं का स्वामी , भरे - पूरे कुटुम्ब वाला तथा समृद्धिवान नृप था । उसका पाँचवा पुत्र सज्जन विनोद था , जो महान तपस्वी , श्रीनाथ का अंश - स्वरूप एवं साधु स्वभाव वाला था । वह रात - दिन सदा वर - प्राप्ति की कामना रखता हुआ समस्त देवी - देवताओं के पूजन में लगा रहता था ; परन्तु श्रीनाथजी , जिनकी असीम सामर्थ्य है , के बिना कौन उसे फल दे ? एक दिन नृप सज्जनविनोद ( अपने ) पाँच सेवकों के संग , अश्वारूढ़ हो , विंध्याचल की दिशा में वन में निकल गया । वहाँ त्रिकुटाचल के मध्य इन्द्र - विजयिनी , वरदायिनी , तत्त्वस्वरूपा कुंभिलासुरी ( नामक देवी का ) निवास है - ऐसा उसने माहात्म्य सुन रखा था । उसके ( दर्शन और उसकी कृपा प्राप्त करने ) हेतु वह वहाँ देवी के मन्दिर आया तथा उसके दर्शन किये । उसने नवरात्रि में उस देवी की पूजा की , जिससे वह फलदात्री उस पर प्रसन्न हो , उसको प्रत्यक्ष हुई । | देवी अंबिका ने अन्य रूप धारण कर उससे ( सज्जन विनोद से ) कहा कि ‘ हे , नृपश्रेष्ठ ! स्वेच्छा से पृथ्वी पर विचरण करने वाले सिद्ध जलंधर तुम्हें वर देंगे । नृपति ने देवी को इस रूप में नहीं पहिचाना तथा मान लिया कि सिद्धेश्वर के दर्शन भाग्य में ही नहीं हैं अथवा अब तो भाग्य से ही सिद्धेश्वर के दर्शन होंगे । अत्यन्त चिंतातुर होकर नृपति अपनी आगे की तीर्थयात्रा पर चला । जब राजा यतिवर ( जलंधरनाथ ) के महानिवासस्थान गिरनार आया कि ( म . मानसिंह कहते हैं । कि मेरे स्वामी ) श्री जलंधर स्वेच्छा से विहार करते हुए उसे ) मिले
श्री जलंध्र ने कहा कि ' हे नृपति , तुम्हारी जो इच्छा हो , वह वर माँगो । मेरे वचन सिद्ध हैं और यदि तुम्हारी कामना सिद्ध नहीं होती है , तो मेरा आशीर्वाद व्यर्थ है । राजा ने कहा कि मेरे धन्य भाग , जो आपके दर्शन मुझे हुए । मुझ जैसे पतित पर हे प्रभु , आप जैसों की कृपा कहाँ नसीब ? मेरे सुकृत के उदय होने से । भाग्यवश्य मुझे आपके दर्शन हो गये हैं । हे नाथ , आपके दर्शन से मेरी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण हो गईं । ' ‘
फिर भी ( वर ) मांग लो ' – सिद्धेश के इन वचनों पर राजा ने वर मांगा है मेरे शत्रु तोमर के हनन हेतु प्रसिद्ध जल - मत्र मुझे दे । महानाथ ने राजा को अपने हाथ से जल - मंत्र दिया । उसी समय पृथ्वी और पर्वतों को फोड़ता नवीन जल उपन उठा । ऐसी फूट पड़ी अपार जल - धारा का तत्पश्चात् विसर्जन किया गया । ( फिर । सर्वत्र व्याप्त श्री जलंधरनाथ को हृदय में धारण करता हुआ नृप बारबार उन्हें प्रणाम कर , अपने राज - भवन की ओर चला । ( उधर ) तूंवर ने सुन लिया था कि राठौड़ ( सज्जन विनोद ) अपने पाँच अनुचरों के साथ निकला है । हृदय में बार - बार ( पुराने ) बैर का स्मरण कर ( तथा कम साथ होने के कारण ) उसका ( तूंवर का ) हृदय - कमल खिल उठा । नव नाथों में चन्द्र ( श्री जलंधरनाथ ) से उसने ( सज्जन विनोद ने ) वर ले रखा था । जल ( मत्रा के वर ( दान ) ने ( तंवर के हृदय - ) कमल को विनष्ट कर दिया । पता पड़ने पर 
सज्जन विनोद कम साथ के साथ निकला है ) दुष्ट तूंवर राठौड़ ( सज्जन विनोद ) से आकर लड़ा । सज्जन विनोद ने नाथजी की कृपा से जल का आहान किया कि जल पर्वत फोड़ता फूट पड़ा । कमधेश ( राठौड़ सज्जन विनोद ) ने बैर - भाव रखने वाले शत्रु पर विजय प्राप्त की और वह दुष्ट तोमर अपने हाथों ही अपने कर्मों से छूटा । तूंवर राजा और उसके सारे पाँच हजार सैनिक ( उस प्रबल वेगवान् ) जल में बह गये । श्रीजलन्धरनाथ की कृपा से कमधेश ( राठौड़ राजा सज्जन विनोद ) पर । ( आगे भी ) निरन्तर सौभाग्य बना रहा । जालंध्रपाव के आज्ञाकारी ( भक्त सज्जन विनोद ) ने ( इस प्रकार ) जल का आह्वान कर राठौड़ों की पुनीत ‘ जळखेड़िया ' - शाखा का विस्तार किया । ( संसार - सागर से ) तारने वाले यतीश्वर ने राठौड़ - वंश पर ( इस तरह ) कृपा की । ( ऐसा ) एक सौ या पांच सौ वर्ष में उनकी कृपा का अवतरण होता ( रहता ) है । आ जलन्धरनाथ तथा आगुरुदव ( आयस देवनाथ ) की कृपा से दास ( मानासह ) ने नृपति सज्जन विनोद के दास्य - भाव ( प्रधान ) चरित्र का सप्रमोद वर्णन किया है । अब राठौड़ जोपसी , जिसके घर नाथजी पधारे तथा अपनी शुभ - दृष्टि से ज्वार ( एक अन्न ) की जगह अपार मोती उपजाये , पर श्रीजलंधरनाथ के प्रताप की।परचा उनकी ही आग्या से लुगा  उसे सुनकर आप सभी भक्त निश्चित हो क्योकी क्योकी नाथजी सबके सहायक है ।