मान्धाता : ‘ श्रीनाथतीर्थावलीस्तोत्र ' के अनुसार प्राचीन समय में मान्धाता ने यहीं पर ( कलशाचल पर ) दीर्घ तपस्या की थी एवं श्रीनाथ - चरणों की कृपा से अपने मनोवांछित वर को प्राप्त किया था यह पुराणयुगीन सूर्यवंशी राजा युवनाश्व का पुत्र था , जो उसके बाद अयोध्या का राजा बना । युवनाश्व निःसंतान थे , अतः पुत्रेष्टि यज्ञ किया गया और
अभिमंत्रित जल एक घड़े में रखकर सब सो गये । रात में युवनाश्व को प्यास लगी और यही जल पी गये । इससे उन्हें गर्भ रहा और दाहिनी कोख अथवा राट फाड़कर इस बालक को निकाला गया । इस बालक के पालन - पोषण की समस्या हल करने के लिए इन्द्र आए और कहा , “ यह मुझे पान करेगा ( मां धाता ) , अर्थात् इसका पोषण में करूंगा । ' ऐसा कहकर इन्द्र ने अपनी अमृतपूर्ण करांगुली इसे पीने के लिए दे दी । अतः इसका नाम ‘ मांधातृ ' पड़ा । ‘ राठ ' से उत्पन्न मांधाता राठौड़ों का मूल पुरुष माना जाता है । | इसने 235 वर्ष राज्य किया , पृथ्वी का षट खंड - भोक्ता चक्रवर्ती सम्राट हुआ , ॐकारेश्वर महादेव की स्थापना की जो इसके नाम पर माधोती तीर्थ कहा जाता है । और मेहपाठ ( मेदपाट ) नगर बसाया , जिसे मेड़ता कहते हैं ।
अभिमंत्रित जल एक घड़े में रखकर सब सो गये । रात में युवनाश्व को प्यास लगी और यही जल पी गये । इससे उन्हें गर्भ रहा और दाहिनी कोख अथवा राट फाड़कर इस बालक को निकाला गया । इस बालक के पालन - पोषण की समस्या हल करने के लिए इन्द्र आए और कहा , “ यह मुझे पान करेगा ( मां धाता ) , अर्थात् इसका पोषण में करूंगा । ' ऐसा कहकर इन्द्र ने अपनी अमृतपूर्ण करांगुली इसे पीने के लिए दे दी । अतः इसका नाम ‘ मांधातृ ' पड़ा । ‘ राठ ' से उत्पन्न मांधाता राठौड़ों का मूल पुरुष माना जाता है । | इसने 235 वर्ष राज्य किया , पृथ्वी का षट खंड - भोक्ता चक्रवर्ती सम्राट हुआ , ॐकारेश्वर महादेव की स्थापना की जो इसके नाम पर माधोती तीर्थ कहा जाता है । और मेहपाठ ( मेदपाट ) नगर बसाया , जिसे मेड़ता कहते हैं ।