: | ‘ नाथां ऊपरी नवनाथ ' श्रीजलंघरनाथ ने राव गोगादे राठौड़ को विजयदायिनी पळतळी " तलवार दी एवं युद्ध - क्षेत्र में उनकी कटी हुई टॉग को जोड़ , उन्हें अमरत्व प्रदान कर अपने साथ ले गये - - -
ऐसा ‘ परचा ' प्रचलित है -
। खेड़ ( मालानी ) के अधिपति राव वीरम की द्वितीय रानी रत्नादेवी की कोख से ।
गोगा का जन्म वि . सं . 1420 , भाद्रपद सुदि 2 को हुआ ।
राव वीरम को जोहियों ने मार डाला था ।
अतः राव गोगा इसका बदला लेने को आतुर थे अन जळ पान अहोड़ , लीधो अंग लागै नहीं ।
| बाप वैर किम वीसरे , गोगादे राठौड़ ।
। 8 । । । राव गोगा मंडोर के पहाड़ों में तपस्यारत श्रीजलंधरनाथ की शरण में गये और उनसे शक्ति - शस्त्र माँगा ।
श्रीजलंधरनाथ ने उनहें ‘ रळतळी ' तलवार दी और कहा कि तुम्हारा प्रण पूरा होगा तथा रणक्षेत्र में स्मरण करने पर मैं तुम्हें सहायता तत्पश्चात गोगादेव जोहियों से बदला लेने जोहियावटी में ‘ सहिवाण ' नामक स्थान पर पहुंचे और जोहियों के मुखिया दल्ला से युद्ध किया ।
श्री जलंधरनाथ द्वारा दी गई ‘ रळतळी ' तलवार के वार से गोगादे ने सर्वप्रथम उसका घोड़ा काट डाला और फिर वह उसके बैलगाड़ी के नीचे छिपने पर बैलगाड़ी के ओधण , खाट , चक्की तथा दल्ला और ‘ थाळों ' को काटती हुई जमीन में धस गई रिण गोगे कर रीस , बल्ला सिर झोकी दुझळ । ।। इसके बाद दूसरे दिन गोगादेव ने पूगल के भाटी राणकदे के साथ युद्ध किया । इसमें उन्होंने राणकदे को मार तो दिया , पर गोगादे का बायां पैर भी कट गया । उन्होंने श्रीजलंधरनाथ का स्मरण किया । योगी जलंधरनाथ ने गोगादे के पुत्र उदयसिंह का , जो इस युद्ध में मारा गया था , पैर मॅगा कर जोड़ दिया । यह बात अवश्य हुई कि शीघ्रता में सैनिक बाएँ पैर की जगह दायाँ पैर ले आये - । बाद में गोगादे जलंधरनाथजी के साथ चुंडा को राजगद्दी सौंपकर कांगड़ा की । ओर चले गये । | आज दिन भी थळी में यह विश्वास है कि हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को भाग्यशालियों को कहीं न कहीं गोगादेव दर्शन देते हैं । गोगादेव को ‘ दसवाँ सिध ' कह कर अत्यन्त आदर दिया जाता है ।
म . मानसिंह ने ‘ नाथ चरित्र ' में , ढाढी बादर ने वीरवाण ' में , आटा पाड़खांन ने ‘ रूपग गोगादेजी रो ’ में , मेजर मोडसिंह ने ‘ राठौड़ राव गोगादेव का जीवन - वृत्त ' में ' एवं ज्ञात - अज्ञात अनेक कवियों ने अपने अनेक ग्रंथों में इस प्रसंग । का उल्लेख किया है
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