🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

30 . दल्ला आसिया

30 . दल्ला आसिया : | इस भक्त पर श्रीजलंधरनाथ के तुष्टमान होने के वृत्तान्त को प्रस्तुत करते हुए । म . मानसिंह ‘ जलन्धर चन्द्रोदय ' में लिखते हैं । “ स्वर्णगिरि ( जालोर ) और नाथगिरि ( जोधपुर ) के बीच नाथजी द्वारा कृपापूर्वक लगाई गई और सींची गई खेजड़ी ( एक वृक्ष ) की बहुतायत वाला एक गाँव है । | वहाँ एक चारण बसता था । उसका नाम दल्ला था । वह विवेकवान और स्वभावतः दूसरों की भलाई करने की वृत्ति रखने वाला था । कोई पाँच - सात पीढ़ियाँ 1 . म . मानसिंह ( जोधपुर ) : व्यक्तित्व एवं कृतित्य : डा . रामप्रसाद दाधीच : १ . 32 . 2 . महाराजा मानसिंह री ख्याल । पृ . 26 . 3 . नागरी प्रचारिणी सभा , काशी राधा रा . शा . स . , चौपासनी से ' बौफीदास गंधावली प्रकाशित है ।

उसकी हुई होंगी , उस समय की बात यहाँ कहता हूँ । गाँव की सीमा में उसे श्रीजलंध्र और गोरख मिले । दल्ला ने उन्हें ) दण्डवत् नमस्कार किया । ( दल्ला ने ) पृष्ठा , तो उन्होंने कहा कि अच्छा जल लाओ । सेवक ( दल्ला ) ने कहा कि पूज्य ( पहले ) आप ( ठंडी ) छाँह में विराजिये ; ( वैसे ) यहाँ का जल खारा ( कट ) है । श्रीजलंधरनाथ ने कृपा की । वे अपने दास ( दल्ला ) पर तुष्ट हुए एवं उसके दारिद्रय पर रुष्ट । ( श्रीजलंधरनाथ ने कहा कि ) जल मीठा हो जायेगा , उसका खारापन मिट जायेगा और तुम्हारे चार पुत्र होंगे , संसार में सभी प्रतापी । जो चौथा पुत्र होगा , वह मेरा अंश - धारी होगा । तुम उसका नाम ‘ पीर ' रखना । ( वह ) तुम्हारी जाति में सूर्य - सदृश होकर रहेगा । । ( चारण ) जाति के श्रेष्ठ आसिया - वंश के इस कुलीन घर में ( जलंधर ) नाथ अवतरित हुए । वह अनुपम वंश धन्य है , धन्य है जिस घर में सिद्धों के नृपति ( जलंधर ) नाथजी हैं । ( श्रीजलंधरनाथ से ) दुल्ला ने प्रार्थना की कि हे नाथ ! आप धन्य हैं , ( आप ) सभी प्रकार से समर्थ हैं । हे यतीश्वर , ( मैं आपका ) बंदा कुछ भी योग्य नहीं ; हे ईश्वर , जो कुछ भी हैं , आपकी कृपा से हूँ । । इतना कह कर कृपालु नाथजी ने फिर कहा कि मैं तुम्हारे घर पुनः आऊँगा , जब तुम गाँव के ठाकुर कहलाओगे और मैं तुम्हें वैभव सम्पन्न बना दूंगा । कमल - नेत्रों वाले दयानिधि रूप नाथजी वचन देकर विहार कर गये । नाथजी के वचन सत्य हैं , अमोघ आज्ञा हैं । उनके वचन टाले नहीं टलते । । उसी दिन से दल्ला सचमुच ग्राम - अधिप बन गया । उसके ईश्वरीय - अंशी , बड़े बुद्धिमान चार पुत्र हुए । उसका चौथा पुत्र श्री जलंध - अंशधारी हुआ , ‘ पीर ' नाम का अत्यन्त प्रशंसनीय । वह अपनी चारण जाति में तथा अपने कुल में सम्राट ( - सदृश ) हुआ । उस गाँव का जल साक्षात् अमृत के समान मधुर हो गया ; अन्य गाँवों का जल कटु ही रहा , निश्चित ही न पीने लायक । दीपमालिका के दिन श्रीजलंधरनाथ ने अपना वचन स्मरण कर पाँच योगी साथ लिये और दुल्ला के नवन पधारे । दल्ला ने कह रखा था कि कोई योगी यहाँ आयें , तो मुझे कहना । वह भवन में बैठा था । इतने में श्रीनाथजी द्वार पर आ खड़े हुए और कहा , “ दलिया कहाँ है ? ' इस पर किसी ने ( ड्योढीदार ने ) कहा , “ अहो योगीराज , यह आप क्या कह रहे हैं ? ये तो गाँव के सरदार हैं । ' ' करुणाधारी महाराज यह सुनकर वापस लौट गये । दल्ला ने घर में बैठे हुए यह वार्तालाप सुना , तो तत्काल बाहर आकर पूछा कि यहाँ कौन आया था ? “ यहाँ योगी आये । । उससे ( द्वारपाल से ) यह सुन कर ( दल्ला ) चारण स्वयं यतिवर श्रीजालन्धरनाथ के पीछे दौड़ा । श्रीनायजा तो गाँव के बाहर पधार गये थे कि वह आप भी बहा * पहुचा । बोला “ महाराज , मुझे मार कर आप कहीं चले ? मैं तो आप सिद्धेश्वरका ही ( यह ) बनाया हुआ ( अकिंचन ) दास हूँ । ” करुणामय प्रतिपालक ( श्रीजलन्धरनाथ ) को ( दल्ला ने ऐसा कह कर ) खड़े रख दिया अर्थात वे खडे रह गये । भक्त दुल्ला ने जाकर श्रीनाथ के चरण स्पर्श किये । उसका जन्म सफल हो गया । श्रीनाथ ने तुष्ट होकर , कृपा दर्शाते हुए , उसे स्वयं - स्वरूप बना लिया । जहाँ वे सब खड़े थे , वहाँ धूप थी । दला ने प्रार्थना की कि आप छाया में पधारिये । तब श्रीनाथजी ने कहा , “ यहाँ ही खेजड़ी की अनुपम छाया हो जायेगी । ऐसा कहकर दंत - शुद्धि के लिए जो दातुन थे , उन्हें रोप दिया । वहाँ शीघ्र ही वृक्ष उगने लगे और एक प्रहर में तो उस जगह छाया हो गई । समस्त जन हर्षित हुए ; ( उनके जन्म ) सफल हो गये । योगी - वेशधारी रूप में सब प्राणियों ने नाथजी के दर्शन किये । हे दल्ला , तेरा जन्म धन्य है कि तुम्हें श्रीजलंधरनाथ विशेषकर मिले । ( अन्य ) देवों और सिद्धों को घड़ी भर के लिये जिनके दर्शन दुर्लभ हैं , ऐसे वे दयालु श्रीजलंधरनाथ दो प्रहर तक वहाँ सब दुनिया को दिखे । प्रतिपालक ( श्रीजलंधरनाथ ) ने दर्शन देकर सबकी मति शुद्ध की । उन्होंने ( नाथजीने ) दल्ला को ( अपना ) आत्म रूप बनाया और उसके पुत्र को ( अपना ) अंशावतार । फिर श्रीजलन्धरनाथ ने ( दल्ला को ) सचेत किया कि इस जगह मेरे चरण स्थापित करना । मैं यहाँ नित्य निवास करता हूँ । यह धरती मेरे मन को भाती है । दीपमालिका के दिन किन्हीं - किन्हीं भक्तों को ( नाथजी के दर्शन होते हैं । । ( दिव्य ) प्रकाश तो बहुत - से ग्राम - निवासी इस समय भी देखते हैं । अपने सकल भक्तों को दर्शन देकर नाथजी ऐसा कहते हुए वन में पधार गये । श्रीजलंधरनाथ जन्म लेकर या अवतार धारण कर संसार को पावन करते हैं । डॉ . मोहनलाल जिज्ञासु ने दल्ला आसिया का परिचय देते हुए लिखा है - “ ये आसिया शाखा में उत्पन्न हुए थे और जोधपुर राज्यान्तर्गत खाटावास गांव के रहने वाले थे । ये रायसिंह ( बीकानेर ) के समकालीन थे । कोई आश्चर्य नहीं , इन्होंने रायसिंह का राज्याश्रय भी ग्रहण किया हो , क्योंकि उनकी प्रशंसा में इनका अनेक गीत मिलते हैं । बाल्यावस्था में ही इनके माता - पिता का स्वर्गवास हो गया । था । जनश्रुति के अनुसार जंगल में गायें चराते - चराते एक साधु से इनका साक्षात्कार हुआ , जिसने योग - विद्या के इल पर इन्हें विद्वान बना दिया । कालान्तर में रायसिंह ने इन्हें लाखड़थूम नामक गाँव प्रदान किया । उस समय वह साधु इनसे फिर मिलने आया , किन्तु दल्ला अभिमान में आकर नहीं मिला । साधु यह कहकर चला गया कि मुझे दल्ला को कुछ देना था , किन्तु उसके भाग्य में वह वदा ही नहीं । उसकी जितनी उन्नति होनी थी , हो चुकी ; अब आगे नहीं होगी । पता चलने पर दल्ला बहुत पछताया । साधु से मिलने का प्रयत्न भी किया , किन्तु सफलता नहीं मिली । इनके लिखे हुए स्फुट दोहे एवं गीत उपलब्ध होते हैं । " म . मानसिंह द्वारा ‘ जलंधर चंद्रोदय ' में लिखित उपर्युक्त ‘ दल्ला आसिया उधरण परिचय कथन ' में दुल्ला आसिया के नाथ - अंशी प्रशंसनीय ‘ पीर ' नामक चतुर्थ पुत्र का उल्लेख आया है । नाथसेवक सुकवि सबळा लाळस ने स्वरचित ‘ निसांणी ' में भी सूचित किया है - दलिया चारण ने दियो बेटो ऊबंबर । । नाम कायो पीर निज सकवि देरासर । डॉ . जिज्ञासु ‘ पीर आसिया ' का परिचय देते हुए लिखते हैं कि ' ये आसिया शाखा में उत्पन्न हुए थे और मारवाड़ राज्यान्तर्गत लाकड़थूम ग्राम के निवासी थे । इनके पिता का नाम दल्ला था । ये औरंगजेब के समकालीन एवं उसके कपा - पात्र थे ; अतः उसके पास रहते थे । कहते हैं , सांचौर परगने के कालेटी गाँव में कलहट बारहठों के हाथों से इनकी मृत्यु हुई थी । इनके लिखे हुए कुछ स्फुट गीत उपलव्य होते हैं । इनका समय 1583 ई . बताया जाता है । दरल्ला आसिया और लावडघम विषयक सूचना मुंहता नेणसी ने भी दी है - ‘ लाखण ४५ , रा . पता नगावत रौ दत्त , आसीया देल्ला चोभावत नु । हिमें जोगी सेसमलोत है । चारण बांभण बसे । अरट 4 कोसीटा 100 करै जितरा

Post a Comment

0 Comments