31 . म . अजीतसिंह : म . जसवन्तसिंह प्रथम की मृत्यु के पश्चात् म . अजीतसिंह का जन्म वि . सं . 1735 , चैत्र वदि 4 ( 19 फरवरी , 1679 ई . ) को लाहोर में हुआ । इन्होंने वीर । टर्गादास एवं अन्य स्वामिभक्त सरदारों के संरक्षण में पल - बडकर तत्कालीन बादशाह औरंगजेब से जमकरे लोहा लिया , जितने फलस्वरूप उसके दाप्य होकर
र इनको मनसब प्रदान कर जालोर , साँचोर और सिवाणा की जागीर दी । म , अजीतसिंह ने वि . सं . 1755 , ज्येष्ठ शुक्ला 13 के दिन जालोर दुर्ग में प्रवेश किया । तत्पश्चात् औरंगजेब की मृत्यु ( वि . सं . 1663 , फाल्गुन वदि 14 : 20 फरवरी , 1707 ई . ) होने पर उसके उत्तराधिकारी शाह आलम बहादुरशाह के जोधपुर के शाही फौजदार मेहराब खाँ से वि . सं . 1765 , श्रावण वदि 12 ( 4 जुलाई , 1708 ई . ) को आपने अपने पैतृक राज्य को प्राप्त कर ही लिया । | सेवग दौलतराम ने अपनी रचना ‘ जलंधरगुणरूपक ' में इस समस्त घटनाक्रम को ‘ अथ महाराज श्री अजीतसिंघजी नु प्रसन हुआ सौ वर्णण ' शीर्षक से प्रस्तुत किया है । वि . सं . 1755 में अजीतसिंह के जालोर आने के पश्चात् उनके द्वारा श्रीजलंधरनाथ की आराधना एवं नाथजी का उन पर प्रसन्न होना कवि की कलम से इस प्रकार चित्रित हुआ है औरंगजेब की धर्मान्धता ने सनातन धर्म को जो सर्वाधिक हानि पहुँचाई , श्रीजलंधरनाथ के वरद हस्त से म . अजीतसिंह ने उसकी क्षतिपूर्ति कर उसे मारवाड़ में पुनः प्रतिष्ठा प्रदान की । सेवग बगीराम भी ‘ जलंधरजसभूषण ' में लिखता है
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