श्री श्री 1008 योगिराज श्री केशरनाथजी महाराज की पूण्यतिथि पर सत् सत् नमन्
9 जून 17 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शुक्रवार
अमृत लीला :-
श्री पूर्णनाथजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के उपरान्त आप वि.स. 2006, मिगसर वदि 4 को सिरेमंदिर पाट - गादी पर विराजे ।
आपका जन्म - स्थान पिपलोन तहसील सिवाणा जिला बाड़मेर, जहाँ एक रबारी ( देवासी ) परिवार में आपने शरीर धारण किया,
घर की साधारण अवस्था थी और आप पशु चराकर जीवनयापन कर रहे थे, बचपन से ही आप भक्ति -भावना रखने वाले संयमी पुरुष थे ।
एक बार गायों को चराते - चराते आप आबू पर्वत पहुँच गये, वहाँ आपको एक दिव्य गुण - सम्पन्न आत्मा से साक्षात्कार का जंगल में सुयोग मिला, उन्होंने आपको प्रेरणा दी कि तुम सिरेमंदिर, जालौर जाकर नाथजी के चरणों में अपना जीवन समपिर्त कर दो ; तुम्हारा जीवन सार्थक हो जायेगा ।
उस समय आपके परिवार में व्रद्ध माता और एक बहिन थी, आबू में उपयुरक्त संकेत पाकर आपके ह्रदय में सांसारिक माया - मोह का जीवन त्यागने की इच्छा बलवती हो उठी, आप ह्रदय में उठे वैराग्य भाव को रोक न सके और पवित्र तपोभूमि सिरेमंदिर आकर श्री गणेशनाथजी के चरणों में स्वम् को संप्रित कर दिया, श्री गणेश नाथजी आपके चोटी गुरु हुए, वि.स. 1993 में आपने श्री पूर्णनाथजी महाराज से दीक्षित होकर वेश धारण किया ।
उन दिनों भारणी गाँव, तहसील भीनमाल जिला जालौर में श्री भोलागिरिज़ी महाराज तपस्या -रत थे, वे योग- मार्ग में प्रवीण सिद्ध थे, दीक्षित होने के पश्चात् तुरन्त ही आप श्री भोलागिरि जी की सेवा में उपस्थित हुए और योग तथा षट् - कर्म की विद्या सीखनी प्रारम्भ की, तीन वर्ष के कठोर अभ्यास के उपरान्त आप योग- विद्या में प्रगति कर वि.स. 1995 में गाँव भागली पधारें और फिर जालौर अखाड़े में पधारें ।
जालौर के अखाड़े तथा सिरेमंदिर आदि स्थानों का कार्य - भार आपके गुरु महाराज भली भांति संभाले हुए थे, तपस्या हेतु उपयुक्त समय जानकर आपने गुप्त- आज्ञा प्राप्त की और वि.स. 1996 में गाँव भागली में चित् हरणी नामक स्थान पर जाकर गुप्त - वास किया तथा कठोर तपस्या में जुट गए, इस अवस्था में लगभग छः माह बाद भक्त "गेनाजी देवासी भागली " को आपके सर्वप्रथम दर्शन हुए थे ।
उसके बाद गेनाजी देवासी और श्री मंगलसिंहजी सिंधल भागली ने आपकी सेवा प्रारम्भ की, पता पड़ने पर भागली तथा आस-पास के अन्य गाँवो के निवासी भी धीरे धीरे आपकी सेवा में उपस्थित होने प्रारम्भ हुए, चित्-हरणी में श्री केशर नाथजी महाराज ने तीन वर्ष तक कठोर तप किया, वहाँ गुफा, धुणा और नाथजी के चरण चिन्ह है, जिनकी स्थापना आपके कर कमलों से ही हुई थी, आपका चित्-हरणी का धुणा तो आज भी मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है, वि.स.1999 में तपोमूर्ति श्री केशरनाथजी सिरेमंदिर पधारें ।
उस समय सिरेमंदिर और आस-पास का क्षेत्र तनिक शिथिलाचार का शिकार हो रहा था, बड़े अधिकारी यहाँ नृत्य- युक्त आमोद - प्रमोद की गोष्टियां आयोजित करने लगे थे, इससे यह स्थान अपनी गरिमा खोने लगा था, और मात्र एक पर्यटन स्थल बनता जा रहा था, शिवरात्रि पर लोग यहाँ एकत्रित हो कर चंग पर अश्लील गीत गाते थे ।
श्री केशरनाथजी ने अपने गुरु भाई श्री नवेनाथजी तथा शिष्य श्री अमरनाथजी के सहयोग से दृढ़ता दिखाते हुए ऐसे अधार्मिक आचरणों को बंद किया और इस स्थान को पुनः पवित्र रूप दिया ।
सिरेमंदिर की सुव्यवस्था स्थापित कर आपने वि.स. 2004 में रेवत गाँव में पधार कर निवास किया और यहाँ प्रेरणा प्रदान कर श्री जलन्धर नाथजी का मंदिर बनवाया, जिसमेँ स. 2005 में मूर्ति प्रतिष्ठित हुई ।
तत्पश्चात भागली गाँव के भक्तों के आग्रह पर आपने भागली में अपना धुणा जगाया और आसान जमाया, उस समय भागली गाँव के निवासी किसी न किसी व्याधि से हर समय त्रस्त रहते थे, ग्रामवासियों ने इससे छुटकारा दिलाने की आपसे प्रार्थना की ।
आपने उन्हें नया गाँव बसाने का सुझाव दिया, गाँव वाले नाथजी की अटूट भक्ति से प्रेरित हो कर इस प्रस्ताव पर सहमत हो गए, आपने योग दृष्टि से पास ही नई भूमि का शोधन किया, जहाँ लोग जाकर बसने लगे, वि.स. 2007 से 2011 तक का समय इस नई बसावट में लगा था, आपने एक मडी बंधवाई और दो मंदिर___एक श्री जलन्धर नाथजी का और दूसरा श्री जागनाथजी का बनवाये, जिनकी प्रतिष्ठा आपके कर कमलों द्वारा वि.स. 2011, ज्येष्ठ माह में हुई ।
इस प्रकार आपने वि.स. 2006 में गादी - भार सँभालने के बाद थोड़े समय में ही आसपास के गांवों में अच्छी जागृति पैदा की और इस पीठ की प्रतिष्ठा बढ़ाई ।
गाँव खेड़ा सरदारगढ़ में नदी के किनारे खड़िया बेरा आया हुआ है, वि.स. 2011 में इस रमणीक स्थान पर आपने पक्की साळ बनवाकर धुणा चेतन किया और अपना आसण जमाया, यहाँ बाद में भी आपका आना जाना रहा ।
वि.स. 2012 में श्री केशर नाथजी ने भैरुनाथजी के अखाड़े में एक बड़ा कमरा बनवाकर अखण्ड धुणा कायम किया और निवास किया ।
तत्पश्चात वि.स. 2013 में गाँव बैरठ के पास आपने श्रीनाथजी के मंदिर में आसण जमाया, यहाँ आपने पक्का धुणा एवम् कमरा बनवाया, भक्त समुदाय को आप नित्य ज्ञानोपदेश भी देते, अल्प समय में ही आपने अपने निश्छल प्रेम एवम् सच्ची नाथ भक्ति से यहाँ और निकट के अशिक्षित श्रद्धालुओं में अच्छी चेतना जाग्रत की, यहाँ लगभग दो वर्ष निवास कर आप फिर जालौर अखाड़े में पधार गये ।
जालौर अखाड़े में आपके पधारते ही यहाँ अच्छी धार्मिक जागृति हुई, अखाड़े में सत्संग - जागरण के कार्यक्रम नित्य प्रति होने लगे, अनेक भजन - मण्डलियों का इसमे बड़ा सहयोग रहा, इसका जनसाधारण पर उत्तम प्रभाव पड़ा और इस स्थान के प्रति उनका आकर्षण खूब बढ़ा, आपके धर्मोपदेशो को सुनने के लिए जनता उमड़ी पड़ती थी ।
भक्त - समुदाय के आग्रह पर तथा श्रीनाथ स्थलों की सुव्यवष्ठा हेतु आप निरन्तर विचरण करते ही रहते थे, कभी कही ,तो कभी कही ।
" साधु तो रमता भलां "
इसे आगत का संकेत ही समझा जाना चाहिए कि आप वि.स. 2017 में जालौर अखाड़े में पधार कर निवास करने लगे और इसी वर्ष ज्येष्ठ शुक्ला 15 गुरूवार के दिन आप पुण्यात्मा का परमब्रह्मा से मिलन हो गया ।
आपके देहावसान का जब दुखद समाचार विधुत गति से फैला, तो अपार जन- समूह आपके अंतिम दर्शनार्थ अखाड़े में एकत्रित हो गया, आपके समाधि जुलुस की अपूर्व तैयारियाँ हुई और फिर आपकी देह को सिंहासनारूढ़ कर गगन भेदी जय-जयकार के मध्य भजन - कीर्तन के साथ सिरेमंदिर लाया गया ।
लोग सुनाते है की नियत स्थान पर समाधि खोदना प्रारम्भ किया ही था, कि बीच में बड़ा सा पत्थर आ गया, जिसे सामान्य सी बात समझी गई, पर ऐसी सामान्य थी नहीं, एक भक्त की अंतिम दर्शन की अभिलाषा से ही यह लीला हुई थी ।
बागरा निवासी भक्त भबूतमल जैन को गुरुदेव के देहावसान का समाचार कुछ देरी से मिला, सुनते ही वे गुरुदर्शन के प्यासे रवाना हो तो गए, पर सशंकित थे, कि देरी होने जाने के कारण अंतिम दर्शन शायद ही होंगें ।
यदि उन्हें समाधि में विराजमान कर दिया, तो इस जन्म तो दर्शनलाभ होने से रहा, अन्ततः तेज चलते चलते वे सिरेमंदिर आ ही पहुँचे और और दर्शन भी हो गए, वह बड़ा सा पत्थर भी सहजता से निकल गया और समाधि कार्य विधिवत् सम्पन हुआ ।
योगीराज श्री केशरनाथजी के तेजोमय व्यक्तिव की चर्चा करते आज भी लोग नहीं अघाते, योगाग्नि से आपकी देह-यष्टि दीप्ती थी, तपे तपाये शुद्ध स्वर्ण सा केसरिया शरीर आपके नाम को सार्थक करता था, लम्बी कद- काठी, पृथ्वी को स्पर्श करती जटाएँ, प्रदीप चेहरा और मनोहारी वाणी तथा सात्विक आचरण ने अदभुत आकर्षण भर दिया था आपके व्यक्तित्व में ।
आँखों में ऐसा तेज था कि लोग द्रष्टि से दृष्टि नही मिला पाते थे, कच्चे-पक्के लोग तो आपके निकट आने का साहस ही नहीं जुटा पाते थे, दूसरे के मनोभाव पढ़ने में आपको समय नहीं लगता था, आगन्तुक के मन की बात पहले ही जान लेते थे ।
मन के मैले मनुष्यों से आप बात तक करना पसन्द नही करते थे, अतः ऐसे "सज्जनों" के आगमन से पूर्व ही आप समाधिस्थ हो जाते थे, और कई घंटे बीत जाने पर सचेतन होते थे, कभी - कभी तो दो-दो दिन तक अन्य भक्तगणों को भी आपके सजग होने की प्रतीक्षा में भूखे- प्यासे बैठे रहना पड़ता था, आप सहज समाधि में लीन रहते थे, अपनी निश्छल, भोली तथा अशिक्षित सेवकी को आप अत्यन्त प्रेममयी दृष्टि से देखते थे और उनके सुख-दुःख में साझीदार बनते थे, जो भी आपकी कृपा-दृष्टि पाने में सफल रहा, उसने अपना अहोभाग्य समझा, आप आशुतोष शिव अवतार महापुरुष ही थे, आपकी जीवन लीला में कभी आपकी फोटो कैमरे नही आई ।
आपकी शिष्य मण्डली :-
श्री श्री 1008 श्री अमरनाथजी महाराज
श्री श्री 1008 श्री भोलानाथजी महाराज
श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी महाराज
संग्रहकर्ता :-
राठौड़ भंवरसिंह भागली
*श्री शान्तिनाथजी टाईगर फोर्स भारत*
इस पोस्ट को पूर्णरूप में ही शेयर करे
0 Comments