🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी महाराज की जीवन परिचय "



    " जीवन परिचय "
● नाम - ओटसिंहजी जोरावत राठौड
● पिता का नाम - श्री रावतसिंहजी
● माता का नाम - श्री सिणगार कंवर
● जन्म - 19 जनवरी 1940 , वि. सं. 1996 माघ कृष्ण पक्ष पंचमी सोमवार
● दिक्षा - 1 नवम्बर 1954 , वि. सं. 2011 शुक्ल पक्ष पंचमी सोमवार
● पिठाधीश आसीन 28 अक्टूबर 1968 , वि. सं. 2025 कार्तिक शुक्ला सप्तमी सोमवार
● देवलोक गमन - 1 अक्टूबर 2012 , वि. सं. 2069 आसोज वदी तृतिपदा सोमवार
● गुरू - श्री केशरनाथजी महाराज सिरेमन्दिर

आपका जन्म प्रात:काल 3.30  पर गाँव भागली ( जालौर ) जोरावत परिवार में हुआ ।
आपके पिताश्री रावतसिंहजी व माताश्री सिणगार कंवर अपने जीवन में श्री केशरनाथजी महाराज के श्रध्दालु भक्त थे ।
उस समय श्री केशरनाथजी महाराज भागली गाँव में तपस्या कर रहे थे । आप अपने माता - पिता के साथ बचपन में श्री केशरनाथजी महाराज के दर्शन करने के लिए जाया करते थे ।

अपने इस पुत्र की अत्यन्त शान्त , सोम्य एवं साधु पृकृति , अन्तरीय प्रेरणा देखकर इस आपको श्री केशरनाथजी के चरणों में समप्रित कर दिया ।

यह बात वि. सं. 2007 की है
महज 10 वर्ष की की अल्प आयु में आपने " योगीराज श्री केशरनाथजी महाराज के चरणों का आश्रय पा लिया ।
आपने अपनी प्रकृति के अनुकूल परिवेश को पाकर दत्तचित्त होकर गुरू सेवा प्रारंभ की ।
आपकी दृढ आस्था मधुर स्वभाव समर्पित सेवा तथा शान्त चित देखकर योगमुर्ति श्री केशरनाथजी महाराज प्रसन्न हो गये ।

फलतः वि. सं. 2011 को सिरेमन्दिर पर वेश देकर आपको दीक्षीत किया और शान्तिनाथ नाम दिया ।

आपके जेष्ठ गुरूभाई एवं जलंधरपिठाधिश्वर ( सिरेमन्दिर ) भोलानाथजी के देवलोक गमन के उपरान्त वि. सं. 2025 को श्री श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी महाराज का इस गोरवशाली जलंधरपीठ पर पीठाधिश्वर के रूप में गादी तिलक हुआ ।

त्याग और तपस्या से गौरवान्वित इस तपोभुमी के पीठाधिश्वर बनने के पश्चात आपने अपनी सम्पर्ण क्षमता ,सामथ्रृय और अनुभव से अपने समस्त उत्तरदायित्व का निर्वाह करते इस स्थान ( सिरेमन्दिर ) को सर्वप्रिय सामाजिक श्रध्दा केन्द्र का स्वरूप कर दिया ।

भेदभाव रहीत परिवेश है यहां का हर सामाजिक के लिए ।

हर आने वाले साधु को समुचित आदर भेट दी जाती है । हर आगन्तुक के लिए भोजन व्यवस्था है ।
और हर आने वाले के कष्ट निवारण का यथा संभव सद्प्रयास किया जाता है ।
सच्चे संत के गुणों को मनचा - वाचा - कर्मणा समन्वित किया जाता है ।
 और हर एक के प्रति सद्- भाव की सौरभ से सुवासित है आपका दरबार , जिसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को तनिक भी स्थान नही है

सर्वधर्म - सद्-भाव पर आधारित आपके आचरण ने यहाँ के सामाजिक - सास्कृत जीवन ने आपको अत्यन्त आदरणीय बना दिया है ।एवं हर व्यक्ति आपके प्रति श्रध्दावनत है ।
किसी भी वर्ग के सामाजिक - सांस्कृतिक आयोजन में प्राय: उपस्थित होकर आपने यहां के सम्पूर्ण समाज को सुखद सामाजिक के भावनात्मक स्वर्ण - सूत्र से जोड दिया है आप यहां के भावत्यक के प्रतिक महापुरूष है ।

आपने वि. सं. 2035 चैत्र शुक्ल द्वितिया ( 10 अप्रेल 1978 ) को इस सिध्दपिठ ( धर्मस्थली ) सिरेमन्दिर पर 7 दिवसीय महारूद्र यज्ञ करवाया , इस भव्य आयोजन के प्रत्यक्षदर्शी अपने अनुभवों के बारे में बताते है । कि उन्होनें जालौर की पावन धरा पर इससे पहले  ऐसी आस्था का महाकुंभ कभी भी नही देखा था । जिसमें श्रध्दालुओं का इतना जन सेलाब उमडा की आयोजन स्थल पर पैर रखने की जगह नही थी ।

इस पावन तीर्थ सिरेमन्दिर के विकास के तो आप विश्वकृर्मा रूप ही है । आपने सम्पूर्ण सिरेमन्दिर धाम को नया रूप दिया है यहा पर भवन निर्माण का कार्य चलते ही रहता है , और आज भी चल रहा है ।
 आपने श्री केशरनाथजी महाराज की तपोस्थली चितहरणी ( भागली ) को नया रूप दिया वहा पर आपने श्री केशरनाथजी महाराज का मन्दिर ( झूपी ) , केशरनाथजी महाराज की तपोस्थली  ( भंवर गुफा ) का निर्माण , महादेवजी का मन्दिर और झालरे का निर्माण करवाया । और जालौर भैरूनाथजी के अखाडा में भी बहुत सा निर्माण कार्य करवाया ।
आपने सिरेमन्दिर , भैरूनाथजी का अखाडा जालौर और चित्- हरणी भागली में तो इतना निर्माण कार्य करवाया है जिसका पुरा वर्णन में यहा पर नही कर रहा हूँ ।

आपने गाँव गाँव में श्री जलंधरनाथजी महाराज के मन्दिरों का निर्माण करवाया   जिसमें मुख्यत: भागली में केशरनाथजी महाराज का मन्दिर , जलधंरनाथजी का मन्दिर , जूनी भागली में गणेश नाथजी का मन्दिर , हनुमानजी का मन्दिर , बाबा रामदेवजी का मन्दिर , माताजी का मन्दिर आदि ।

और  रेवत , आवलोज , कतरासन , कलापुरा , गोल , चूरा , डाँगरा , तडवा , तरोड , नाडी ,तीखी , दांतवाडा , देसूज ,धाणसा , नरपडा , पहाडपुरा , बागरा , बालवाडा , विशनगढ , बैरठ , मोक , माँडवला , मोदरा , रायथल , रेवतडा , सरत , सायला आदि । ये सब गाँव जालौर में है
और जोधपुर में बालेसर और सेंखला गाँव में जलंधरनाथजी के मन्दिर बनवाये ।
गुजरात में डूँआ , नेनावा और सराल गाँव में नाथजी के मन्दिर बनवाये ।

और गाँव गाँव में भगवान विष्णुजी और शिवजी के मन्दिर भी बनवाये जिसमें भागली , तडवा , पीजोपरा , सरूपपुरा ,पहाडपुरा , बैरठ , वासण , सोमतीपुरा , तीखी आदि ।

● आपने जालौर में राठौडों की कुलदेवी नागणेश्वरी माताजी का भव्य मन्दिर और प्रवेश द्वार  क्षैत्रिय राठौडों के सहयोग से बनवाया ।

आपने अपने जीवन काल में 30 चार्तुमार्च किये जिसमें ● सर्वप्रथम बैरठ गाँव में  वि . सं . 2038 और  दुसरा 2051
● चूरा गाँव वि . सं . 2039 , 2045 , 2049 , 2067
● सिरेमन्दिर वि . सं . 2040 , 2042 , 2043 , 2044 , 2046 , 2047 , 2048 , 2050 , 2055 , 2061 , 2063
● रेवतडा वि .सं . 2051
● विशनगढ वि .सं . 2052
● बांलवाडा वि. सं. 2060 , 2066
● देबावास वि. सं. 2053
● चित् हरणी वि. सं. 2054 गाँव रेवत वालों की तरफ से
●डगातरा वि. सं. 2056
●भागली वि. सं. 2057
● खंडप बाडमेर वि. सं. 2058
● जालौर भैरूनाथजी का अखाडा वि. सं. 2062
● जालौर दुर्ग वि. सं. 2064
● मोदरा वि. सं. 2065
● बोकडा में अन्तिम चार्तुमार्च वि . सं. 2068

और आपने एक महाकुंभ मेले को भी ( खाना खिलाया ) भोजन करवाया ।

आपने अपने जीवन काल में बहुत से भक्तो को समत्कार ( पर्चे )  दिये  और भक्तो का उध्दार किया ।
जिसमें आपका सबसे बडा समत्कार सोमवार का दिन है

आपके शिष्य श्रीकमलनाथजी , श्री गंगानाथजी ,श्री किशननाथजी , श्री वीरनाथजी , श्री हरिनाथजी , श्री धर्मनाथजी महाराज

आपने योगी श्री भैरूनाथजी महाराज की निर्वाण शताब्दि के उपलक्ष में वि. सं. 2063 फाल्गुन 2 , सोमवार से फाल्गुन शुक्ला 7, तक सिरेमन्दिर पर श्री विष्णु - महायज्ञ का भव्य आयोजन करवाया । जिसमें भारतवर्ष के प्रमुख - प्रमुख योगीराज पधारें । इस महायज्ञ में साधु - सन्तों और भक्तों का जन - सैलाब इतना था की कही पर भी पैर रखने की भी जगह नही थी ।

आपने सदैव जन - हीत को वरीयता दी और वही किसी ऊंच-नीच , अमीर-गरीब , छोटे-मोटे , जात-पात के भेद भाव से रहीत ।
 अदभूत तृतिय दर्शी व्यक्ति के धनी होने के साथ साथ में आप नाथ परम्परा के भी जानकार थे ।

अमूमन आप मौन ही रहते थे अथवा कम ही बोलते थे । परन्तु जब आपका चिर मौन टुटता तो आपकी मधुर एवं दिव्य वाणी अर्मृत वर्षा से कम नही होती थी ।
और आप नाथजी कोमी एकता की मिशाल थे ।
मुस्लीम भक्तों के लिए आप पीर बावसी है वही हिन्दु भक्तों के लिए नाथजी बावसी है ।
 वेसे आपने अपने जीवन काल में बहुत सारे कार्य किये है जिसका पुरा वर्णन में यहाँ पर नही कर रहा हूँ और जिसका में अज्ञानी हूँ ।

1 अक्टूबर 2012 सोमवार को आपने अपना शरीर छोड दिया । लेकिन साथ ही छोड गये अपनी जन-मन में कभी भी नही मिटने वाली अमिट छाप ।

आपकी समाधि सिरेमंदिर के प्रांगण में स्थित है ।
वंदन कृता :-
राठौड भंवरसिंह भागली  व
श्री शान्तिनाथजी महाराज सिरेमन्दिर " जन्मस्थान राठौड जोरावत परिवार भागली

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सिरेमन्दिर के बारे में बहुत सारी जानकारीयाँ आगे आपको मिलती रहेगी


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1 Comments

  1. श्री 1008 शान्तिनाथजी महाराज के चरणों में शत शत नमन 🙏🙏

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