🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

परम् पूज्य नारायण गिरी जी महाराज के श्रीमुख से पीरजी कि महीमा_

#तभी तो वे #सबके_नाथजी कहलाते थे ??

#नवनाथों की सिद्धपीठ श्री जलंधरनाथ सिद्धपीठ सिरेमन्दिर जालौर की ख्याति राजस्थान में ही नही सम्पूर्ण भारत मे फैली है, आद्यात्मिक्ता से परिपूर्ण इस स्थान पर नाथो के द्वारा सदैव भक्तों के कष्टों का निवारण होता रहता है, जन मानस के ह्रदय सम्राट पीर श्री शान्तिनाथजी वास्तव में एक सिद्ध योगी थे, वे सज्जनता व सरलता की प्रतिमूर्ति थे, सभी श्रद्धालुओं के प्रति उनके मन मे प्रेम था, चाहे वे किसी भी धर्म के हो या किसी भी जाति के हो, सभी धर्मों के प्रति उनमे समभाव था ।

गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है -- है पुरूष श्रेष्ठ ! जो पुरूष सुख तथा दुःख में विचलित नही होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है ।

जबकि श्री शान्तिनाथजी भौतिक रूप से इस नश्वर संसार मे नही है, परन्तु सूक्ष्म रूप से जनमानस के ह्रदय में आज भी निवास करते है, आपका जैसा नाम था, वैसा ही आपके व्यक्तित्व का प्रभाव था, श्रद्धालु आपके दर्शन मात्र से ही परम शांति का अनुभव करते थे ।

में जब सन्यास की भावना से अपना घर तेलवाड़ा छोड़कर चला, तो आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व सर्वप्रथम मेरी भेट पीर शान्तिनाथजी से हुई थी, वे वास्तव में अलौकिक सिद्ध पुरूष थे, जब मैने उन्हें प्रणाम किया तो वे मेरी ओर कुछ देर तक अपलक घूरकर देखते रहे, उनकी दृष्टि में ना जाने क्या था, कि अपने पूरे शरीर मे विद्युत की तरंगें सी दौड़ती हुई महसूस हो रही थी, लगा जैसे योग का शक्तिपात हुआ हो, कुछ देर तक मैं स्तम्भित सा खड़ा रहा, अचानक उनकी वाणी मेरे कानों में सुनाई दी, *कटारों है छोरा ? ने कटाती आयो है* तो मेरी तंद्रा टूटी, मुझे सामान्य होने में कुछ समय लगा, मैंने कहा तेलवाड़ा गांव रो हूँ, छूटते ही उन्होंने कहा, *जठे गोगाजी रो मेलो लागे हैं,* जी बावसी मैंने कहा, इसके बाद में 3-4 दिन तक वहाँ उनके पास रहा ।

इसके बाद मेरा सन्यास हुआ, उज्जैन कुम्भ में श्री शान्तिनाथजी भी पधारे, उन्हें मेरी याद उस समय भी बनी हुई थी, उन्होंने पूरे जूना अखाड़े में मुझे तलाश करवाया और जब हम आपस में मिले तो उनकी आँखें नम थी,  मैने आगे बढ़कर उनकी आँखें पौछकर ह्रदय से लगा लिया, काफी देर तक हम ऐसे ही लिपटे रहे, ये मिलन का दृश्य ऐसा था, जैसे राम का भरत का मिलन, पूरे कुम्भ में वे मेरे साथ ही रहे, मेरे प्रति उनका विशेष लगाव था ।

कुम्भ की समाप्ति के पश्चात ॐकारेश्वर के दर्शन करने भी हम साथ ही गए, वापसी में साथ के लोगो को अचानक बड़ी जोर से भूख लगने लगी, लेकिन रास्ते मे कोई व्यवस्था नही थी, तभी मेरी नजर सामने एक बोर्ड पर पड़ी जिस पर चौखी ढाणी लिखा था, सब कुछ जानते समझते हुए भी मुझसे पूछा, *ओ चौखी ढाणी कोई वे* तब मैंने कहा आ रबारियों री ढाणी है, तब उन्होंने सब से कहा कि यही पर भोजन करेंगे, इस प्रकार महाराज जी का सभी जातियों के प्रति प्रेम प्रगट होता है, वे जात पात, छुआ छूत को नही मानते थे, तभी तो वे सबके नाथजी कहलाते थे ।

कुछ वर्षों के बाद जब में अपनी कुटुम्ब यात्रा के लिए तेलवाडा गया तब जालौर से श्री महाराज जी भी मेरे साथ मेरे गाँव गए, गांव में पहुँचकर अचानक उन्होंने मुझसे कहा आज तो माताजी के हाथ का बना भोजन करना है, तब हम घर पहुँचे और माँ के हाथ का भोजन किया, भोजन करने के बाद महाराज जी बोले आज कई वर्षों के बाद माँ के हाथ का भोजन कर मन को तृप्ति मिली है, ऐसा लग रहा था जैसे माँ के रूप में साक्षात माता अन्नपूर्णा ही भोजन करा रही हो ।

इसके बाद मैं जब भी जालौर जाता था, मैं उनके दर्शन करने अवश्य जाया करता था, *उनके दर्शन करने से ही मेरे मन के सारे अंतदर्द्व स्वयं ही समाप्त हो जाते थे* पीर शान्तिनाथजी वास्तव में दिव्य व अलौकिक संत थे, वे अब जबकि भौतिक रूप से इस संसार मे नही है, परन्तु उनकी कॄपा अभी भी मेरे साथ है, ऐसा मेरा अनुभव है ।

गीता में भी श्री कृष्ण कहते है, हे कुन्तीपुत्र शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस जिस भाव का स्मरण करता है, वह उस उस भव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है, जो श्रेष्ठ पुरूष होते है, जो योगी या सिद्ध पुरूष होते है, उनकी आत्मा रूपान्तरण के पश्चात श्रेष्ठ राजकुल, गुरुकुल अथवा श्रेष्ठ संत कुल में जाति है, मैं तो समझता हूँ कि उनके दिव्य तेज का कुछ अंश मुझे भी मिला है, ऐसी प्रत्यक्ष अनुभूति मुझे हुई है ।

अब जबकि पीरजी का भौतिक शरीर वहां पर नही है, तो मेरा मन भी उस पवित्र भूमि की ओर जाने के लिए पूर्व की भांति आंदोलित नही होता है, कारण चाहे जो भी हो, उस परमसत्ता को ज्ञात है, महायोगी शान्तिनाथजी को सम्पूर्ण भक्त जन महान संत, सिद्ध योगी और शिव स्वरूप मानकर पूजते है, मेरा मानना है कि अब वे भौतिक शरीर को छोड़कर शिव मय हो गए है, सबके नाथ बन गए है ।

श्रीमुख से_
परम् पूज्य नारायण गिरी जी महाराज
पीठाधीश, दुदेश्वर मठ गाजियाबाद

                ~सबके नाथजी स्रोत ~
#संकलन :-
#श्री_शान्तिनाथजी_टाईगर_फोर्स_संगठन_भारत

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