#पीरजी महाराज का #पर्चा समत्कार
गुरुदेव परम् पूजनीय पीरजी श्री शान्ति नाथजी महाराज का हर एक वचन #सदवचन होता था, इसी कारण हर कोई उनके सामने सोच समझकर ही बोलते थे, एवं किसी भक्त को कोई भी समस्या होती थी, तो भी गुरु महाराज को सुनाते थे, जिसका समाधान भी पीरजी महाराज के सद वचनों से हो जाता था ।
एक बार पीरजी महाराज अपने भक्तों के साथ चित हरणी एवं पीजोपरा के लिए भर्मण करने पधारे हुए थे, उस दौरान दाता के साथ दाता के परम् भक्त स्वर्गीय रूप सिंह जी मांडवला वाले भी साथ थे, उनको भर्मण करते हुए तीन चार दिन हो गए थे, इसलिए रूपसिंह जी ने सोचा कि आज घर चला जाता हूँ, रूपसिंह जी ने सोचा कि दाता को बिना बताए ही चला जाता हूँ, इसलिए रूपसिंह चलते चलते धीरे धीरे पीछे रह गए ।
पीरजी महाराज एव सभी साथी चलते चलते बाते कर रहे थे, लेकिन रूपसिंह जी की आवाज नही आ रही थी, तो दाता ने साथियो से पूछा कि रुपा कहां है, और जोर से आवाज दी, #रूपा_ऐ_रूपा लेकिन रूपसिंह जी ने पीरजी महाराज की आवाज सुनकर भी अनसुनी कर दी, तो दाता फरमाए #रूपु_बोलू_वू_परु_का उसी समय से रूपसिंह जी को सुनाई देना बंद हो गया, #बेहरे_हो_गए
तभी साथियो ने कहां की ये तो दाता का ही समत्कार है, तब सभी ने दाता से विन्नति की, तब दाता ने कहां की सामने वाला व्यक्ति बात करेगा, उसके होटो के हिलने पर सामने वाले कि बातो को रूपसिंह समझ जायेगा, तभी से रूपसिंह जी आजीवन तक सामने वाले व्यक्ति के होटो के हिलने पर समझ जाते थे, और उसका जवाब दे देते थे ।
पीरजी महाराज के ऐसे ही अनगिनत पर्चे है, जो उनको भक्तो द्वारा सुनने को मिलते है, पीरजी महाराज की महिमा ही निराली थी, गुरुदेव पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज साक्षात शिव के अवतार थे ।
संग्रहकर्त्ता :-
सुजाराम देवासी साफाड़ा
श्री शान्तिनाथजी टाईगर फोर्स संगठन भारत
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