श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज ब्रह्मलीन हुए( शिव में समाऐ) उस क्षण के कभी नहीं भूलने वाले कुछ पल .....
पीरजी बावसी उस दिन इलाज करवाने उदयपुर गए हुए थे, वहाँ पर उदयपुर में दीपसिंह जी पूर्व मंडी अध्यक्ष जालौर के घर में रुके हुए थे, दीपसिंह जी पीरजी के परम् भक्त है ।
सोमवार 1 अक्टूबर 2012 करीब शाम के सात आठ बजे थे, श्री शान्तिनाथजी महाराज दीपसिंहजी के आवास पर रुके हुए थे, उनका इरादा था की मंगलवार को डॉक्टर को दिखाया जाय, सब ने पीरजी बावसी से निवेदन किया कि आज ही दिखा लेते है, लेकिन ( पीरजी ) नाथजी महाराज के कहने पर मंगलवार का दिन ही तय किया गया, फिर पीरजी बावसी आराम से बैठ गए ।
वहाँ उदयपुर में सबको पता चला कि श्री शान्तिनाथजी महाराज उदयपुर में पधारें हुए है, तो थोड़ी ही देर में लोगो की भीड़ जुट गई, लोग उनके दर्शन के लिए आने लगे, श्री पीरजी बावसी भी सभी से आत्मीयता से मिलने लगे, सबके हाल चल पूछे, और सभी को आशीर्वाद दिया ।
उसके बाद में पीरजी बावसी ने रात के भोजन में सेव और दूध लिया, और फिर थोड़ी इधर उधर टहलने लगे, खुद ही चल कर बाहर तक गये, और फिर कुछ समय बाद वापस अंदर आ कर बैठ गए, करीब नौ साढ़े नौ बजे थे, लेकिन तब भी लोग उन्हें घेरे हुए थे, और नाथजी महाराज भी सभी से मिल रहे थे, और बाते कर रहे थे ।
थोड़ी देर बाद उन्होंने उदयपुर में स्थित नाथ संप्रदाय के भिखारीनाथ के मठ के बारे में पूछा, और
फिर अपने सम्मरण सुनाने लगे, कुछ भक्तो का जिक्र किया, और कुछ बाते भी बताई, पीरजी बावसी कभी हँसने लगते तो कभी गंभीर हो जाते, रात के 10 बज चुके थे, सभी लोग उनके दर्शन कर- कर के और आशीर्वाद लेकर करके अपने अपने घर जा रहे थे ।
पीरजी बावसी ने कुछ देर बाद उन्होंने अपने भक्त दुर्गसिंहजी बालवाड़ा की तरफ देखा, और उन्हें अपने पास बुलाया, दुर्गसिंहजी हमेशा पीरजी बावसी के साथ ही रहते थे, पीरजी बावसी ने दुर्गसिंहजी से पूछा कि तु आज इतना उदास क्यो है, कुछ बोलता क्यो नहीं, क्या हुआ ?
दुर्गसिंहजी ने कहा कुछ नहीं बावसी बस ऐसे ही, पीरजी बावसी बोले कुछ तो बात है, तभी चुपचाप बैठा है ( शायद दुर्गसिंहजी को पहले से ही पता चल गया हो )
फिर पीरजी बावसी ने हँसते हुए दूसरी बात शुरू कर दी ।
इसी बीच श्री नाथजी महाराज अपनी चिर परिचित मुद्रा में बैठ गए, सभी ने सोचा की वें ध्यान कर रहे हैं, शायद कुछ देर बाद बोलेँगे, सब लोग इंतजार करने लगे, तभी उनके चेहरे पर तेज नजर आने लगा, सब लोग कुछ समझ पाते उससे पहले ही अनंत के तेज में उनका तेज मिल गया ।
श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज ध्यान की मुद्रा में ही चिर तपस्या में लींन हो गये ।
किसी को यकीन ही नहीं हुआ, इतने शांत स्वरूप नाथजी महाराज इस प्रकार चले जायेंगे, वहाँ उपस्थित सभी लोग स्तम्भ ही रह गए, एक दम सन्नाटा सा गया, और वहाँ पर उपस्थित सभी लोंग फुट फुट कर रोने लगे ।
दुर्गसिंहजी भी वही पर बैठे बैठे निढाल से हो गये, सभी को सँभालने वाले नाथजी महाराज हमें इस प्रकार बेहाल छोड़कर चले गये ।
श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज ने अंतिम सांस दीपसिंहजी के घर उदयपुर में ली ।
अंतिम क्षणों में उन्होंनो सभी को याद किया, और हमेशा अपने साथ रहने वाले दुर्गसिंह जी सोलंकी बालवाड़ा से बात करते करते शिव में समां गये ।
जालोरी पीर श्री शान्तिनाथजी,
धर्म री जोत जगाई !
घर-घर भक्ति रो ग्यान बाँटियो,
भक्तो पर मेहर कराई !!
संग्रहकर्ता :-
राठौड़ भंवरसिंह भागली
श्री शान्तिनाथजी टाईगर फोर्स भारत
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