🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

महाराजा मानसिहजी जोधपुर को जलन्धरनाथ पीठ चमत्कार ।

क्षेत्रफल की दृष्टि से मारवाड़ रियासत राजपूताने की
सबसे बड़ी रियासत थी तथा भारत वर्ष की देशी
रियासतों में इसका तीसरा स्थान था। भारत भर में
केवल हैदराबाद एवं जम्मू-कश्मीर ही इससे बड़ी
रियासतें थीं। जब मारवाड़ में राठौड़ों की तीसवीं
पीढ़ी के राजा विजयसिंह (752-795) की
पासवान गुलाबराय का पुत्र तेजसिंह मर गया तो
गुलाबराय ने राजकुमार मानसिंह जो कि विजयसिंह
के पुत्र गुमानसिंह का पुत्र था, को अपने पास रख
लिया। ई.1795 में विजयसिंह की मृत्यु हो गयी तथा
उसके पौत्र भीमसिंह, जो कि स्वर्गीय राजकुमार
फतैसिंह का दत्तक पुत्र था, ने जोधपुर के दुर्ग पर
अधिकार कर लिया।
राज्यासीन होते ही उसने अपने भाई-भतीजों को
मरवाना आरंभ कर दिया। राजकुमार मानसिंह ने
अपने प्राणों की रक्षा के लिये जालोर के दुर्ग में शरण
ली। और स्वयं को मारवाड़ का शासक घोषित कर
दिया। भीमसिंह की सेना ने 10 वर्ष तक जालोर दुर्ग
को घेरे रखा किंतु मानसिंह पकड़ा नहीं जा सका।
जब मानसिंह को जोधपुर की सेना से बचने का कोई
उपाय न दिखा तो उसने 15 अक्टूबर 1805 को
जालोर दुर्ग छोड़ने का विचार किया। जलन्धरनाथ
पीठ के योगी आयस देवनाथ ने यह सुना तो उसने
मानसिंह से केवल 4-5 दिन और जालोर का किला न
छोड़ने का आग्रह किया और कहा कि यदि 21
अक्टूबर तक किला नहीं छोड़ोगे तो मारवाड़ का
राज्य तुम्हें मिल जायेगा।
आयसदेव नाथ की बात सही निकली, 20 अक्टूबर
1805 को जोधपुर नरेश भीमसिंह की मृत्यु हो गई।
राजधानी जोधपुर से शिवचंद भण्डारी, ज्ञानमल
मुहणोत तथा शंभुदान आदि ने इन्द्रसिंह को संदेश
भिजवाया कि घेरा जारी रखा जाये तथा पोकरण
ठाकुर सवाईसिंह के आदेश की प्रतीक्षा की जाये
किंतु चतुर इन्द्रराज समझ चुका था कि भाग्य को
संवारने का यही सबसे अधिक उचित समय है। यदि
जोधपुर में प्रवास कर रहे राज्याधिकारी मारवाड़ के
राजा का मनोनयन करेंगे तो राजा उनके प्रति समर्पित
रहेगा। अत: बेहतर यही है कि मानसिंह को जोधपुर
का राजा बना दिया जाये। उसने उसी समय मानसिंह
को सब समाचार कह भिजवाये तथा तथा मानसिंह
को आदर सहित जोधपुर लाकर मारवाड़ की गद्दी पर
बैठा दिया। इसके बाद इन्द्रराज सिंघवी मारवाड़ राज्य
का प्रमुख कर्ता धर्ता बन गया। आयस देवनाथ के
प्रति श्रद्धानत होकर राजा मानसिंह ने उसे अपना गुरु
बनाया और जोधपुर नगर से बहर मेड़ती दरवाजे से
कुछ दूरी पर ईशान कोण में एक विशाल भव्य मन्दिर
का निर्माण करवाया जो अपने आकार और महत्ता के
कारण महामन्दिर कहलाया।

मन्दिर परिसर में दो सुन्दर महल भी बनाये गये
जिनकी छत पर एक छतरी का निर्माण करवाया गया
जहाँ खड़े होकर आयस देवनाथ राजा मानसिंह को
प्रात: काल में दर्शन देते थे। राजा दुर्ग में स्थित महलों
से ही गुरु के दर्शन करता और उसी के बाद अन्न-जल
ग्रहण करता तथा प्रत्येक सोमवार को महामन्दिर में
उपस्थित होकर गुरु को प्रणाम करता। महामन्दिर के
पास ही मानसागर तालाब बनाया गया जिसमें राजा
मानसिंह और आयस देवनाथ नौका विहार किया
करते थे।