🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

ऐसे पहुँचते है सिरेमन्दिर

!!  ऐसे पहुँचते है सिरेमन्दिर !!

सिरेमन्दिर धाम राजस्थान राज्य के जिला जालौर में आया हुआ है, जालौर नगर के प्राचीन परकोटे से सटी हुई सड़क पर पश्चिमी दिशा में तीन किलोमीटर चलने पर सिरेमन्दिर की तलहटी आती है ।

जालौर बस डिपो के पास गिटको होटल के सामने जहाँ से सड़क शुरू होती है, वहाँ पर बहुत विशाल गेट है, यहाँ से रवाना होने पर सबसे पहले बाई ओर राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेचियां जी माताजी का मन्दिर आता है, थोडा और आगे बढ़ने पर शीतला माता का मन्दिर आता है, जहाँ चैत्र शुक्ला को प्रतिवर्ष मेला भरता है, जिसमें जिले भर के श्रद्धालु समोद सम्मलित होते है, फिर बाएँ ओर ही स्वर्णगिरि तथा कलशाचल के बीच की घाटी आती है, यहाँ एक और प्रवेश द्वार आता है, यहाँ पर एक सुन्दर बगीचा आता है,  उसके बाद कलशाचल की तलहटी आती है, इससे तनिक पहले दाई ओर खेतों के मध्य " रतन कूप " राव रतनसिंह द्वारा बनवाया गया कुँआ के अवशेष है, यहां पहुँचते ही सबसे पहले पिरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के दर्शन होते है, यहाँ पर शान्तिनाथजी महाराज की विशाल छत्री बनी है, जिसका निर्माण पीरजी महाराज की शिष्य मंडळी ने करवाया है ।

सिरेमन्दिर के लिए जहाँ से चढ़ाई प्रारम्भ होती है, वहाँ एक छोटा सा मंदिर है, यह मन्दिर महाराजा मानसिंह जी द्वारा बनवाया गया है, इस मन्दिर में महाराजा मानसिंह जी द्वारा प्रतिष्ठापित श्री जलन्धर नाथजी के चरण चिन्ह है, यहाँ पर यात्रियों के लिए एक अच्छा विश्राम स्थल है, तथा इसके पृष्ठ भाग में एक कुआ, टाकां तथा सामने प्याऊ है, इन सबकी सुरक्षा के लिए परकोटा बनाया गया है, जिसमे विशाल दरवाजा है, और फाटक लगी हुई है, इसके सामने एक बड़ा सा बगीचा आया हुआ है, जिसमे कई छोटे बड़े पेड़ पौधे है, जिसे देखते ही मन मोहक हो जाता है ।

इस परकोटे के बाहर बाएँ ओर श्री जगम रामेश्वरजी तथा श्री गोपीनाथजी कुलियाण की एवं दाई ओर श्री बालकनाथजी सुमेरमुर के ग्रहस्थ योगी तथा बाईसा भुरनाथजी श्री केशरनाथजी महाराज की शिष्या की समाधियां है, इनके अलावा भी और साधु संतों की समाधिया बनी हुई है ।

यहाँ से फिर श्री जलन्धर नाथजी के चरण चिन्हों को नमन कर यात्री चढ़ाई प्रारम्भ करते है, पुरे मार्ग पर यात्रियों की सुविधा के लिए सीढ़ियों का निर्माण *श्री हिम्मतमल जीवाजी परिवार* गाँव सरत जिला जालौर निवासी वालो ने करवाया था, लेकिन अब पूरी चिढाया और नये मार्ग का निर्माण पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के कर कमलों द्वारा किया गया है ।

कुछ चढ़ाई चढ़ने पर टेकरी वाले हनुमानजी का मन्दिर आता है, यहाँ यात्री थोडा विश्राम करते है, लेकिन अभी श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए सिरेमंदिर तलहटी से हनुमान मन्दिर तक डामर की सड़क बना दी गई है, वहाँ तक श्रद्धालु अपना वाहन आराम से ले कर जा सकता है, फिर मार्ग की लगभग आधी चढ़ाई चढ़ जाने पर ऋद्धि - सिद्धि- प्रदाता श्री गणपति जी का मन्दिर आता है, जिसे गणेश घाटी कहते है, यहाँ तक पहुचते - पहुचते लोग पूरी तरह थक जाते है, यहाँ एक बार फिर यात्री विश्राम करते है, अभी थोड़े साल पहले यहाँ किसी भक्त ने यात्रियों के पीने के लिए पानी की प्याऊ बनाई है ।

लोक श्रुति के अनुसार महाराजा मानसिंहजी ने सर्वप्रथम वि.स. 1860 में यहाँ गणपति जी की स्थापना की थी, इसकी वर्तमान चौकी का निर्माण श्री श्री 1008 ब्रह्मलीन गुरुदेव श्री शान्तिनाथजी महाराज की प्रेरणा से श्रद्धालु *श्री शंकरलाल जी प्रजापत सुपुत्र श्री समरथाजी प्रजापत* जालौर ने वि. स. 2028 में कराया था ।

हनुमान मन्दिर से लेकर गणेश मन्दिर तक चढ़ने में थोड़ी कठिनाई होती है, गणेश मन्दिर के थोड़ी ही ऊपर पानी की बड़ी टंकी बनी हुई है, उधर पानी पिने की सुविधा उपलब्ध है, उसके आगे फिर चढ़ने के लिए नये रास्ते का निर्माण किया गया है, जो समतल और सीधा है, जिससे चढ़ने में आसानी हो गई है, इसका निर्माण ब्रह्मलीन श्री शान्तिनाथजी महाराज ने करवाया था, इसके आगे भी नये मार्ग का कार्य श्री गंगानाथजी महाराज के द्वारा संप्पन किया जा रहा है ।

इस गणेश घाटी के पश्चात् उतनी चढ़ाई नहीं है, यात्री धीरे धीरे चलकर आगे शारदा कुण्डाल तक पहुँचते है, यहाँ माँ सरस्वती का मन्दिर है, यहाँ भी विश्राम लिया जा सकता है, शारदा कुण्ड इस समय नही है ।

इससे आगे कुछ ही दूर चलकर सिद्धेश्वर श्री जलन्धर नाथ की पावन तपस्या- स्थल सिरेमन्दिर को देखकर यात्री अपनी समस्त थकान भूल जाता है ।

यहाँ पर नाना पुष्पों को सहलाता सौरभ समीर, मकरन्द की मस्ती में मंडराते - मचलते भर्मर झुण्ड, मनमोहक कर्णप्रिय कलख करते कोकिल- कोक, कुलंग, बतख-बटेर, पारावत सारस-सारिका आदि के समूह को देखकर  मन आनंदित हो बना है, तथा नृत्यलीन मयूर, शाखाओं पर फलांगते बन्दर, कुलाचे भरते मृग, प्रकृत बैर- भाव विस्मृत कर इस तपोवन के पावन परिवेश में विचरते है  मोर, भुजंग, तथा केहरी- कुरंग आदि वन्य जीव यहाँ पर अद्भूत परिवेश की सृष्टि करते है, यहाँ पहुँचने के बाद लोगो को निचे उतरने का मन ही करता है, इस धाम के आगे इंद्रापुरी भी लाजा मरती है, यह सब धामों में पाचवां धाम कहलाता है, यहाँ पर आदिनाथ भगवान शिवस्वरूप श्री जलन्धर नाथजी महाराज युगों युगों से विराजमान है ।

संग्रहकर्ता :-
भंवरसिंह जोरावत भागली
श्री शान्तिनाथजी टाईगर फोर्स संगठन भारत

Post a Comment

0 Comments