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गुरु दत्तात्रेय भगवान की कथा :-

गुरु दत्तात्रेय भगवान की कथा :-

एक बार नारद जी ने तीनों देवियों उमा, रमा और सावित्री से महर्षि अत्रि की पत्नी को सतियों में महान सती अनसूया के पतिवृत धर्म की बेहद तारीफ़ की, मतलब तुम लोगों का पतिवृत धर्म तो उनके सामने कुछ भी नहीं है, ये सुनकर तीनों को बेहद जलन हुयी उन्होंने अपने अपने स्वामियों पर दबाब डाला कि वे अनसूया की इस मामले में कङी परीक्षा लें, सीधी सी बात काम भावना से प्रभावित करें ।

तीनों देव यानी बृह्मा विष्णु महेश ने अपनी बीबियों को समझाया की ! इन साधु संतो से पंगा लेना ठीक नहीं क्यों फ़ालतू का बखेङा मोल ले रही हो, पर वे नहीं मानी ।
ये तीनों भाई अनसूया के आश्रम साधु रूप में पहुँचे, सती अनसूया अपने तप के प्रभाव से इनके आने के पीछे की सारी कहानी जान गयी, और उन्होंने पहले ही तपोबल से न सिर्फ़ उन्हें बालक बना दिया, बल्कि स्तनपान भी करा दिया, अतः काम दृष्टि से परीक्षा लेना ही खत्म हो गया, क्योंकि स्तनपान कराने से अनसूया माता के समान हो चुकी थी, उधर ये सुनकर कि तीनों देव बच्चे बन गये, लक्ष्मी सावित्री उमा के होश उङ गये ।

खैर.. इन देवियों द्वारा समझौता क्षमा आदि माँगने पर अनसूया ने उन्हें पहले जैसा ही कर दिया, लेकिन एक बङी घटना तो घटित हो चुकी थी, वह यह कि तीन देव अनसूया के पुत्र रूप हो चुके थे, अतः ये बात वास्तविकता में भी होनी चाहिये, क्योंकि दैवीय क्रियायें..बस यूँ ही.. तर्ज पर नहीं होती, अतः त्रिदेवों ने.. बृह्मा ने अपने अंश से रजोगुण प्रधान सोम यानी चन्द्रमा के रूप में, विष्णु ने अपने अंश से सतगुण प्रधान दत्त के रूप में, और शंकर ने अपने अंश से तमगुण प्रधान दुर्वासा.. के रूप में अनसूया का पुत्र बनकर अवतार ग्रहण किया ।

अब इनमें विष्णु का अंश.. दत्त जो सतरूप में था, और अत्रि मुनि का पुत्र होने के कारण आत्रेय भी कहा जाता था, इस तरह दत्त और आत्रेय को मिलाकर दत्तात्रेय नाम हो गया,
जब ये तीनों बालक सोम यानी चन्द्रमा.. दुर्वासा और दत्तात्रेय कुछ बङे हुये, और इनका जनेऊ यानी यग्योपवीत संस्कार हुआ, तब सोम यानी चन्द्रमा और दुर्वासा अपना तेज दत्तात्रेय को देकर स्वयँ वन में तप करने चले गये ।

इस तरह दत्तात्रेय का आविर्भाव या जन्म सृष्टि के प्रारंभिक सत्र में ही हो गया था, बृह्मा के मानस पुत्र महर्षि अत्रि इनके पिता थे, और कर्दम ऋषि की कन्या तथा सांख्यशास्त्र के प्रवक्ता कपिल की बहिन सती अनुसूया इनकी माता थीं, इसलिये इस समय.. बृह्मा, विष्णु, महेश रूपी त्रिमुखी दत्तात्रेय की उपासना की जाती है, इनके 3 मुख 6 हाथ वाला त्रिदेवमय स्वरूप ही हर जगह पूजा जाता है, दत्तात्रेय की मूर्ति के पीछे 1 गाय, तथा इनके आगे 4 कुत्ते दिखाई देते हैं, और दुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास कहा गया है, विभिन्न मठों, आश्रम और मंदिर में इनके इसी प्रकार की मूर्ति नजर आती है ।

योगियों का ऐसा मानना है कि दत्तात्रेय सुबह बृह्मा के स्वरूप में दोपहर के समय विष्णु के स्वरूप में तथा शाम के समय शंकर के रूप में दर्शन देते हैं, शास्त्रों में इनकी प्रशंसा में कहा है -
आदौ बृह्मा मध्येविष्णुरन्तेदेव: सदाशिव: ।
तन्त्रशास्त्र के मूल ग्रन्थ । रुद्रयामल के हिमवत खण्ड में । शिव पार्वती के संवाद में । दत्तात्रेय के वज्र कवच का वर्णन  है । इस कवच का पाठ करने से असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं । तथा सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं । इस कवच का अनुष्ठान कभी निष्फल नहीं होता । इस कवच से यह रहस्य भी पता चलता है कि दत्तात्रेय स्मर्तृगामी हैं । यानी यह अपने भक्त के पुकारने पर तुरन्त उसकी सहायता करते हैं । माना जाता है कि ये रोजाना सुबह काशी में गंगा में स्नान करते हैं । इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्तपादुका इनके भक्तों के लिये पूजनीय स्थान है । ये पूर्ण जीवन मुक्त हैं । इनकी आराधना से सब पापों का नाश हो जाता है । ये भोग और मोक्ष सब कुछ देने में समर्थ हैं ।
इस तरह दत्तात्रेय.. योगमार्ग के प्रव‌र्त्तक । अवधूत विद्या के आदि आचार्य । तथा श्री विद्या के परम आचार्य हैं । इनका बीजमन्त्र द्रां है । सिद्ध अवस्था में देशकाल का बन्धन उनकी गति में बाधक नहीं है । वे प्रतिदिन प्रात: से लेकर रात्रि पर्यन्त लीला रूप में विचरण करते हुए । नित्य सुबह  में गंगास्नान । कोल्हापुर में नित्य जप । माहुरीपुर में भिक्षा ग्रहण । और सहयाद्रि की कन्दराओं में दिगम्बर वेश में विश्राम ( शयन ) करते हैं । उन्होंने श्रीगणेश । कार्तिकेय । प्रहलाद । यदु । सांकृति । अलर्क । पुरुरवा । आयु । परशुराम व कार्तवीर्य को योग एवं अध्यात्म की शिक्षा दी । अतः त्रिमूर्ति स्वरूप दत्तात्रेय सर्वथा प्रणाम के योग्य हैं ।
जगदुत्पत्तिकत्र्रे चस्थितिसंहारहेतवे । भवपाशविमुक्तायदत्तात्रेयनमोऽस्तुते ।
प्राचीनकाल से ही दत्तात्रेय ने अनेकों ऋषि मुनि तथा विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तक आचार्यो को सदग्यान का उपदेश दिया है । इन्होंने परशुराम को श्रीविद्या मंत्र दिया । त्रिपुरा रहस्य में दत्त और भार्गव संवाद के रूप में अध्यात्म के ऐसे ही गूढ रहस्यों का उपदेश  है ।
शिवजी के पुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएं प्रदान की ।  प्रहलाद को अनासक्ति योग का उपदेश देकर अच्छा राजा बनाने का श्रेय इनको ही  है । सांकृति मुनि  को अवधूत मार्ग इन्होंने ही दिखाया । कार्तवीर्य अर्जुन को तन्त्रविद्या । नार्गार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई । गुरु गोरखनाथ को आसन । प्राणायाम । मुद्रा । समाधि । चतुरंग योग का मार्ग दत्तात्रेय ने ही बताया  । दत्तात्रेय आज भी अपने शरणागत का मार्गदर्शन करते हैं । और  संकट दूर करते हैं । मार्गशीर्ष पूर्णिमा इनकी प्राकटय तिथि है

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