🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

श्री जलन्धरनाथजी महाराज द्वारा भाखरसी राठौड़ को परचा

श्री जलन्धरनाथजी महाराज द्वारा भाखरसी राठौड़ को परचा :-

करीब दो सौ वर्ष पूर्व गाँव धाणसा जिला जालौर में भाखरसिंह राठौड़ नामक नाथजी के भक्त हुए, हर सोमवार को धाणसा से पैदल चलकर सिरेमन्दिर जाकर श्री जलन्धरनाथजी महाराज के दर्शन करना उनका नियम था, उनका एक भी सोमवार बिना दर्शन किये नही जाता था ।

एक समय बारिश का मौसम था, भाखरसिंह जी खेत में धान बौ रहे थे, हल जोतने में वे ऐसे मग्न हुए कि उन्हें ध्यान ही नही रहा कि आज सोमवार है, और सिरेमन्दिर जाना है, दोहपर में उनकी धर्मपत्नी, भाता  " खाना " लेकर उस दिन देरी से आई, उन्होंने सोचा की आज उनका सोमवार है, तो वे सिरेमन्दिर गए होंगे, लेकिन जब वे खेत पहुँची तो भाखर सिंह जी उन्हें खेत में काम करते दिखे, और उन्होंने देखा की भाखर सिंह ने काफी कार्य भी किया है, तब उन्होंने पूछा की क्या आज आप सिरेमन्दिर जाना भूल गए, तब उन्हें याद आया, और वे अत्यन्त पश्चाताप करते-करते उसी समय सिरेमन्दिर के लिए रवाना हो गए ।

भक्त भाखरसिंह की नाथजी के प्रति ऐसी व्याकुलता देखकर श्री जलन्धरनाथजी महाराज ने जोगी के वेश में धाणसा और सेरणा गाँव के बिच में भाखर सिंह को मिले, उन्होंने भाखर सिंह से पूछा की कहाँ जा रहे हो, तो भाखर सिंह ने कहाँ की सिरेमन्दिर जा रहा हूँ, श्री जलन्धरनाथजी के दर्शन करने के लिए, तब जोगी वेशधारी श्रीनाथजी ने कहाँ की मेँ तुम्हें, तुम्हारे श्री जलन्धरनाथजी को यहाँ पर ही मिलवाता देता हूँ, भाखर सिंह को विश्वाश नही हुआ ।

तब जोगी वेशधारी श्री जलन्धर नाथजी महाराज ने खेजड़ी की एक सुखी लकड़ी दी, और कहा की इसे यहाँ गाड़ दो सात दिन में यह हरी हो जायेगी, और इसके नीचे एक शिवलिंग, पार्वती तथा गणेश जी की मूर्तियां मिलेगी, साथ में एक पत्थर की कुण्डी भी मिलेगी, जो भोजन देगी, उसे तुम मत खाना यह अखूट भण्डार है, इसे सभी को खिलाते रहना और कहा की तुम्हारे लिए अब में इसी स्थान पर सदैव रहूँगा ।

तब भाखरसिंह ने उस लकड़ी को उसी स्थान पर खड़ा कर  दिया, और पीछे मुड़े तो श्रीनाथजी वहाँ से अलोप हो गए, उस स्थान पर उनकी चरण पादुकाएँ मिली, तब भाखर सिंह को विश्वाश हुआ, की ये तो स्वयं श्री जलन्धरनाथजी महाराज ही थे ।

सात दिन बाद खेजड़ी की लकड़ी को देखा तो उसमें कूपल फुट रहे थे, और कुछ ही दिनों में वह खेजड़ी हरी हो गई, यह समत्कार देखकर पास ही खुदाई की गई, तो मूर्तियां और कुण्डी निकली, फिर तो हर सोमवार यहाँ मेला-सा लगने लगा ।

उस कुण्ड से बहुत समय तक सात गाँवों के लिए प्रसाद होती थी, सब मिलकर खाते थे, एक समय भक्त भाखर सिंहजी ने काबा-पट्टी के अपने सभी बन्धुओ को भोजन करवाया, भूल से स्वयं भी उसमें सम्मिलित हो गये, तब ऋद्धि-सिद्धि का वह कुण्डी-भण्डार उसी दिन समाप्त हो गया ।

आज उस स्थान पर श्री जलन्धरनाथजी महाराज का भव्य मन्दिर बना हुआ है, और होली के दूसरे दिन यहाँ वार्षिक मेला भरता है, इसमे बड़ी तादाद में नाथजी के भक्त एकत्रित होते है ।

संग्रहकर्ता :-
राठौड़ भंवरसिंह भागली