🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

नाथ संप्रदाय नवनाथ झुण्डी और भगवान परशुराम

नाथ संप्रदाय नवनाथ
झुण्डी और भगवान
परशुराम

नवनाथ झुण्डी यात्रा १७ लाख ५ हजार ११८ वर्ष पूर्व
नवनाथ 84 सिद्धों द्वारा प्रथम पद यात्रा से प्रारम्भ हुई ।
क्योंकि परशुरामजी भगवान श्रीराम जी के अवतार की
परीक्षा के बाद भी नर- संहार ठीक नही था। नर -संहार
भगवान्‌ शिव का ही कार्य है, अत: अपनी मन शान्ति के लिए
परशुरामजी, योगियों, मुनियों, साधुसंतो की शरण में जाने हेतु
भूमण करने लगे तो सभी सन्तों ने एक ही सुझाव दिया कि
आप गुरु गोरक्षनाथजी की शरण में जाओ, इसका उपाय वे
ही बता सकते है।

परशुरामजी गुरु गोरक्षनाथजी की तलाश में कौलागढ़
ब्रह्मगिरि पर्वत (वर्तमान समय का त्रंबकेश्वर, नासिक) पर
पहुँचे तो अनुपम शिला पर गुरु गोरक्षनाथजी के दर्शन हुए।
परशुरामजी ने सारी व्यथा गुरु गोरक्षनाथजी के चरणो में
नमस्कार करते हुए व्यक्त की...गोरक्षनाथजी ने परशुरामजी
को हाथ आगे बढानें का आदेश दिया और हाथों में
गोरक्षनाथजी ने पात्र देवता को स्थापित कर दियें, और
आदेश दिया की ऐसे स्थान पर जाकर तपस्या करो जहाँ पर
किसी ने तपस्या नहीं की हो और जिस भूमि को आपने दान
नहीं किया हो। परशुरामजी को ऐसी जगह कहाँ नहीं मिली
तो गुरु गोरक्षनाथजी ने आदेश दिया की आप दक्षिण की
तरह मुँह करके चलते जाओ, पीछे मूड़ना नही, चलते चलते
परशुरामजी समुन्द्र के किनारे पहुँचे और चिंतन करने लगे।
आगे सोचकर परशुरामजी समुन्द्र की तरह आगे बढ़े तो
समुन्द्र 12 कोस पीछे हटा और वहाँ ऐसी पृथ्वी निकलकर
आई जहाँ किसी ने तपस्या नहीं की, वही पर परशुरामजी ने
पात्र- देवता स्थापित करके घोर तपस्या करने लगे और बर्षो
तक घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर गुरु
गोरक्षनाथजी प्रकाश रूप में पात्र- देवता से प्रकट हुए,
जिससे वहाँ पर छाई हुई धुंध छट गई

( धुंध को कन्नड़ में मंजू कहते है ) और

गोरक्षनाथजी ने परशुरामजी को #मंजुनाथ” रूप में दर्शन
दिए और आश्रीवाद दिया की आपकी तपस्या से नर- संहार
का प्रायश्चित तो पूरा हो गया है तो फिर परशुरामजी ने गुरु
गोरक्षनाथजी को आदेश कर प्रणाम किया।
उसके बाद से कर्नाटक में #गोरक्षनाथजी को
#श्रीमंजुनाथजी के नाम से जाना जाने लगा। उसी समय
नासिक सिहस्थ मेला त्रयम्बकेश्वर में चल रहा था, सिहस्थ
कुंभ मेले में नवनाथ 84 सिद्ध, श्री गोरक्षनाथजी के दर्शन के
लिए शीला पहुँचे हुए थे। वहाँ पर गुरु गोरक्षनाथजी के दर्शन
नहीं होने पर उन्होंने अपनी दिव्य द्रष्टि से जाना की गुरु
गोरक्षनाथजी तो परशुरामजी को आश्रीवाद देने परशुरामजी
के तपस्या स्थल पर उपस्थित है (मैंगलोर में ) तो नवनाथ 84
सिद्ध परशूरामजी के तपस्या स्थल पहुँच कर श्री
गोरक्षनाथजी को आदेश किया गोरक्षनाथजी ने परशुरामजी
को संबोधित करते हुए कहा की आपकी तपस्या और
प्रायश्चित तो हो गया...मगर पृथ्वी पर जो नर - संहार हुआ
है...वो नवनाथ 84 सिद्धों के आशीर्वाद प्राप्त करने से पृथ्वी
पाप मुक्त होगी।

उसके बाद परशुरामजी ने नवनाथ 84 सिद्धों के आशीर्वाद
प्राप्त किये और गुरु गोरक्षनाथजी ने नवनाथ 84 सिद्धों को
भी संबोधित करते हुए और वचन लेते हुए कहा की त्रेतायुग
अभी अंतिम चरण में है उसके बाद द्वापर और कलयुग
आयेगा तब पृथ्वी पर पाप अधिक होगा अत: आप तभी हर
सिहस्थ कुंभ मेले के बाद पृथ्वी पर पैदल चलते हुए यही
आयेंगे। जिससे पृथ्वी पर हर 12 वर्षों में हुए पाप से मुक्त
होती रहे। इस संसार में जीव सुख से रह सकें। मै भी उस
समय आपकी इस झुण्डी यात्रा में

उपस्थित रहूँगा। तब से ये परम्परा चल रही है और पृथ्वी पाप
मुक्त होती रहती है...

इसी परम्परा को #नवनाथझुण्डी कहते है । इस नवनाथ
झुण्डी परम्परा में स्वयं श्री गुरु गोरक्षनाथजी महाराज और
नवनाथ 84 सिद्ध द्रश्य - अद्रश्य रूप में उपस्थित रहते है।

भेख भगवान द्वारा हर १२ साल में आने वाले त्रयंबक सिंहस्थ
कुंभ मेले में कदलीमठ और नाथ संप्रदाय के नए राजा नियुक्त
किये जाते है...जो पात्र देवता को अपने हाथो में धारण कर
झुंडी यात्रा जो नासिक त्रयंबकेश्वर से कदली मठ कर्णाटक
तक दुसरे योगेश्व॒रो के साथ पैदल यात्रा करते है जो श्रावण
शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) के शुभ दिवस पर शुरू होती है।
और #महाशिवरात्रि” के दिवस # कदलीमठ पहुचकर नए
#राजायोगी जी का गादी अभिषेक होता है जो अगले १२
वर्षो तक संप्रदाय के राजायोगी के रूप में प्रतिष्ठित रहते है।

वर्तमान समय में में श्री श्री १००८ तपोनिष्ठ मटके महाराजा
राजायोगी श्री #निर्मलनाथ जी महाराज को # #कदलीमठ
जिसे #योगेश्वर_मठ भी कहा जाता है इसके महंत और नाथ
संप्रदाय के राजा नियुक्त किये गए है...