🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

श्री जलन्धरनाथ पीठ सिरेमंदिर के तृतीय गादीपति गुरुदेव श्री श्री 1008 श्री भैरुनाथजी महाराज की जीवनी

श्री जलन्धरनाथ पीठ सिरेमंदिर के तृतीय गादीपति गुरुदेव श्री श्री 1008 श्री भैरुनाथजी महाराज की जीवनी

आपका जन्म वारणी ' तहसील आहोर जिला जालौर के एक सुथार परिवार में हुआ था ।
बचपन में ही आपके ह्रदय में नाथ - भक्ति भाव अंकुरित हो गया था ।
और युवावस्था में पदार्पण करते ही आपने वि.स. 1992 में सिरेमंदिर आकर योगिराज श्री भवानी नाथजी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया ।

आपने अपने गुरु महाराज के सुयोग्य निर्देशन में थोड़े समय में ही योग- सिद्धि प्राप्त कर ली और फिर उनके अमृत वचनों का अक्षरश: पालन करते हुए आप नाथ-भक्ति के प्रचार-प्रसार में जुट गए ।

फलत: श्रीजलन्धरनाथ जी की तपोभूमि सिरेमंदिर अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप पुनः अभिवृद्धि को प्राप्त करता हुआ श्रद्धालुओ का आकर्षण केंद्र बन गया ।

जालौर नगर में ' अखाडा ' स्थापित करने का श्रेय आपको ही प्राप्त है ।

आपने जालौर के तत्कालीन हाकिम स्व. श्री अचलदास से कहकर रेबारियों के मोहल्ले में जमींन लेकर यह अखाडा स्थापित किया ।

यहाँ आपने भक्तों के सुविधार्थ ठहरने के लिए कुछ कच्चे पडवे बनवाये , तथा धूणी स्थापित की । और अन्न-क्षेत्र का शुभारम्भ किया ।
आज यह अखाडा ' श्रीभैरुनाथजी का अखाडा ' के नाम से सुप्रसिद्ध है ।

आपका यह दूरदर्शितापूर्ण कार्य भक्तों और श्रद्धालुओ के लिए वरदान स्वरूप था और हैं ।
जालौर नगर के जिला- मुख्यालय होने से लोगों का सरकारी तथा व्यक्तिगत कार्यो के लिए आना-जाना लगा ही रहता था__न कोई धर्मशाला और न ही कोई होटल-लॉज थी ।
अतः इस अखाड़े में आकर ठहरते थे ।

श्री भैरुनाथजी महाराज इस अखाड़े में भी निवास करते थे और सिरेमंदिर पर भी । आपने सिरेमंदिर पर अखण्ड धूणा भी आरम्भ किया , जो आज " श्रीभैरुनाथजी का धूणा " कहलाता है ।
श्रद्धालु इस धुणे की भस्मी लगाकर आपका स्मरण करते है और मनोती मांगते हैँ ।

श्री भैरूनाथजी महाराज ने स्वयं को तपस्या तक ही सीमित नहीं रखा , वरन् लोक हित को प्रमुखता देकर सच्चे सन्त की कर्तव्य - निष्ठा का परिचय दिया ।

जालौर जिला रेगीस्थानी क्षेत्र है । यहाँ पानी का अभाव देखकर आपके सुकोमल ह्रदय को बड़ा आघात लगता था ।
आपने जल - कष्ट निवारण की और भरसक प्रयास किया । ' जल- सिद्धि ' आपको प्राप्त थी ही ।
आपने चारो ओर इस क्षेत्र में घूम-घूमकर भूमि के भीतरी जल- भण्डारों की शोध की और बड़ी संख्या में वहाँ कुँए-बावड़ियों का भक्तजन - सहयोग से निर्माण कराया ।

जालौर जिले के  गांव भागली , आवलोज , तथा जालौर में सोनारिया बैरा , डगातरा, थलुडा, धानपुर, पहाड़पुरा, बालवाड़ा, बाला, बैरठ, माण्डवला, रटूजा, लेटा, वायण, सिकवाडा आदि स्थानों पर !
तथा बाड़मेर जिले के दईपड़ा हथुडियो का , एवम् सरूपरा करणोतो का आदि स्थानों पर निर्मित मीठे पानी के कुँए आज भी आपकी कीर्ति-गाथा गा रहे है ।

जहाँ कडुआ जल था , वहाँ आपने मीठा जल बताकर कुए खुदवाये ।
इस तरह आपने अपनी इस अविस्मरणीय अदभुत देने से इस क्षेत्र के " भगीरथ " होने का गौरव प्राप्त किया ।

आपकी इस परमार्थ - दृष्ठि से आजीविका के अन्य मार्ग भी प्रशस्त हुए ।
किसी समय की सुखी धरती आज हरी ओढनी ओढ़े इठला रही है । बहुत बड़ी देन रही यह आपकी इस क्षेत्र को ।

स्वनामधन्य श्री भैरुनाथजी की प्रकति में परदुखकतराता कूट-कूट कर भरी थी ।
भक्त के कष्ट को अपना कष्ट समझकर उसे मिटाने की आपने हर चेष्टा की ।

अपनी इस परोपकारी प्रवर्ति से आप इस क्षेत्र तक ही नहीं , दूर-दूर तक अत्यन्त लोकप्रिय हो गये ।
समूची सेवकी प्रेम- विभोर होकर आपको हर समय घेरे रहती थी ।
आपने भी भक्तो की मनोकामनाये पूर्ण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।

वृद्धावस्था में आपने सिरेमंदिर आकर निवास कर लिया ।
आपको इस लौकिक जीवन के अन्त का आभास भी संभवतः हो गया था । अतः आप अपने परम् भक्तों को बुला- बुलाकर मिलने भी लगे ।
ऐसा कुछ दिन चला और अन्ततः अंतिम - यात्रा का दिन भी आ गया ।

दर्शनातर्थ आये भक्तों की भीड़ से घिरे योगी श्री भैरुनाथजी ने वि .स. 1963, फाल्गुन वदि 2 की पुण्यतिथि की अमृतवेला में यह शरीर छोड़ दिया और पुण्यधाम प्रस्थान कर गये ।

आपके दिवंगत होने का दुखःद समाचार सुनकर प्रेम- विहवल भक्तों की सिरेमंदिर पर अपार भीड़ जुट गई ।
गुलाल की वर्षा के मध्य ढोल-नगारे बजाते तथा शंख - ध्वनि एवम जय- जयकार से गगन गुंजाते भक्तों ने सिरेमंदिर प्रांगण में आपको वसुन्धरा की गोद में आसीन कर समाधि - कार्य संपन्न किया ।

श्री भैरुनाथजी का समस्त जीवन " पर हित सरिस धरम नहीं भाई " का उत्तम उदहारण रहा । आपके परोपकार के असंख्य कार्यो की साक्षी यह क्षेत्र देता है ।

संग्रहकर्ता :-
जोरावत भंवर सिंह भागली

श्री भैरूनाथजी महाराज के समत्कार अगली पोस्ट में.....

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