श्री जलन्धरनाथ पीठ सिरेमंदिर के तृतीय गादीपति गुरुदेव श्री श्री 1008 श्री भैरुनाथजी महाराज की जीवनी
आपका जन्म वारणी ' तहसील आहोर जिला जालौर के एक सुथार परिवार में हुआ था ।
बचपन में ही आपके ह्रदय में नाथ - भक्ति भाव अंकुरित हो गया था ।
और युवावस्था में पदार्पण करते ही आपने वि.स. 1992 में सिरेमंदिर आकर योगिराज श्री भवानी नाथजी महाराज का शिष्यत्व स्वीकार कर लिया ।
आपने अपने गुरु महाराज के सुयोग्य निर्देशन में थोड़े समय में ही योग- सिद्धि प्राप्त कर ली और फिर उनके अमृत वचनों का अक्षरश: पालन करते हुए आप नाथ-भक्ति के प्रचार-प्रसार में जुट गए ।
फलत: श्रीजलन्धरनाथ जी की तपोभूमि सिरेमंदिर अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप पुनः अभिवृद्धि को प्राप्त करता हुआ श्रद्धालुओ का आकर्षण केंद्र बन गया ।
जालौर नगर में ' अखाडा ' स्थापित करने का श्रेय आपको ही प्राप्त है ।
आपने जालौर के तत्कालीन हाकिम स्व. श्री अचलदास से कहकर रेबारियों के मोहल्ले में जमींन लेकर यह अखाडा स्थापित किया ।
यहाँ आपने भक्तों के सुविधार्थ ठहरने के लिए कुछ कच्चे पडवे बनवाये , तथा धूणी स्थापित की । और अन्न-क्षेत्र का शुभारम्भ किया ।
आज यह अखाडा ' श्रीभैरुनाथजी का अखाडा ' के नाम से सुप्रसिद्ध है ।
आपका यह दूरदर्शितापूर्ण कार्य भक्तों और श्रद्धालुओ के लिए वरदान स्वरूप था और हैं ।
जालौर नगर के जिला- मुख्यालय होने से लोगों का सरकारी तथा व्यक्तिगत कार्यो के लिए आना-जाना लगा ही रहता था__न कोई धर्मशाला और न ही कोई होटल-लॉज थी ।
अतः इस अखाड़े में आकर ठहरते थे ।
श्री भैरुनाथजी महाराज इस अखाड़े में भी निवास करते थे और सिरेमंदिर पर भी । आपने सिरेमंदिर पर अखण्ड धूणा भी आरम्भ किया , जो आज " श्रीभैरुनाथजी का धूणा " कहलाता है ।
श्रद्धालु इस धुणे की भस्मी लगाकर आपका स्मरण करते है और मनोती मांगते हैँ ।
श्री भैरूनाथजी महाराज ने स्वयं को तपस्या तक ही सीमित नहीं रखा , वरन् लोक हित को प्रमुखता देकर सच्चे सन्त की कर्तव्य - निष्ठा का परिचय दिया ।
जालौर जिला रेगीस्थानी क्षेत्र है । यहाँ पानी का अभाव देखकर आपके सुकोमल ह्रदय को बड़ा आघात लगता था ।
आपने जल - कष्ट निवारण की और भरसक प्रयास किया । ' जल- सिद्धि ' आपको प्राप्त थी ही ।
आपने चारो ओर इस क्षेत्र में घूम-घूमकर भूमि के भीतरी जल- भण्डारों की शोध की और बड़ी संख्या में वहाँ कुँए-बावड़ियों का भक्तजन - सहयोग से निर्माण कराया ।
जालौर जिले के गांव भागली , आवलोज , तथा जालौर में सोनारिया बैरा , डगातरा, थलुडा, धानपुर, पहाड़पुरा, बालवाड़ा, बाला, बैरठ, माण्डवला, रटूजा, लेटा, वायण, सिकवाडा आदि स्थानों पर !
तथा बाड़मेर जिले के दईपड़ा हथुडियो का , एवम् सरूपरा करणोतो का आदि स्थानों पर निर्मित मीठे पानी के कुँए आज भी आपकी कीर्ति-गाथा गा रहे है ।
जहाँ कडुआ जल था , वहाँ आपने मीठा जल बताकर कुए खुदवाये ।
इस तरह आपने अपनी इस अविस्मरणीय अदभुत देने से इस क्षेत्र के " भगीरथ " होने का गौरव प्राप्त किया ।
आपकी इस परमार्थ - दृष्ठि से आजीविका के अन्य मार्ग भी प्रशस्त हुए ।
किसी समय की सुखी धरती आज हरी ओढनी ओढ़े इठला रही है । बहुत बड़ी देन रही यह आपकी इस क्षेत्र को ।
स्वनामधन्य श्री भैरुनाथजी की प्रकति में परदुखकतराता कूट-कूट कर भरी थी ।
भक्त के कष्ट को अपना कष्ट समझकर उसे मिटाने की आपने हर चेष्टा की ।
अपनी इस परोपकारी प्रवर्ति से आप इस क्षेत्र तक ही नहीं , दूर-दूर तक अत्यन्त लोकप्रिय हो गये ।
समूची सेवकी प्रेम- विभोर होकर आपको हर समय घेरे रहती थी ।
आपने भी भक्तो की मनोकामनाये पूर्ण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
वृद्धावस्था में आपने सिरेमंदिर आकर निवास कर लिया ।
आपको इस लौकिक जीवन के अन्त का आभास भी संभवतः हो गया था । अतः आप अपने परम् भक्तों को बुला- बुलाकर मिलने भी लगे ।
ऐसा कुछ दिन चला और अन्ततः अंतिम - यात्रा का दिन भी आ गया ।
दर्शनातर्थ आये भक्तों की भीड़ से घिरे योगी श्री भैरुनाथजी ने वि .स. 1963, फाल्गुन वदि 2 की पुण्यतिथि की अमृतवेला में यह शरीर छोड़ दिया और पुण्यधाम प्रस्थान कर गये ।
आपके दिवंगत होने का दुखःद समाचार सुनकर प्रेम- विहवल भक्तों की सिरेमंदिर पर अपार भीड़ जुट गई ।
गुलाल की वर्षा के मध्य ढोल-नगारे बजाते तथा शंख - ध्वनि एवम जय- जयकार से गगन गुंजाते भक्तों ने सिरेमंदिर प्रांगण में आपको वसुन्धरा की गोद में आसीन कर समाधि - कार्य संपन्न किया ।
श्री भैरुनाथजी का समस्त जीवन " पर हित सरिस धरम नहीं भाई " का उत्तम उदहारण रहा । आपके परोपकार के असंख्य कार्यो की साक्षी यह क्षेत्र देता है ।
संग्रहकर्ता :-
जोरावत भंवर सिंह भागली
श्री भैरूनाथजी महाराज के समत्कार अगली पोस्ट में.....
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