15 . गोगा चौहान : । | जोगेश्वर वसतीपाव ने ‘ नाथों के स्थान ' लिखाते हुए लिखाया है कि ददरेड़ा ( जिला चुरू , राज . ) से पश्चिम की ओर 30 कोस पर गोगा की मेड़ी है , जहाँ झाड़ी में गुफा है । वहाँ श्रीजी ने गोगा को वरदान दिया । इसी तरह सबळा लाळस । ने भी ‘ निसांणी ' में लिखा है ।
गोगा चौहान सुप्रसिद्ध लोक - देवता के रूप में लोक - मानस में गहराई से पैठे हुए हैं । जाति एवं सम्प्रदाय - विभेदों से परे समस्त भारत में इस नागों के देवता की गोगा नवमी ( भाद्रपद कृष्णा नवमी , भादपद्र शुक्ला नवमी ' को श्रद्धा - सहित पूजा - अर्चना होती है । राजस्थान के बीकानेर संभाग की नोहर तहसील के गोगामेड़ी स्थान पर हर वर्ष पूरे महिने भर इनका ( श्रावण शुक्ला 15 से भाद्रपद शुक्ला 15 तक ) मेला भरता है । धार्मिक - सामाजिक एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का इस अवसर पर अद्भुत दृश्य देखते ही बनता है । ददरेड़ा या ददरेवा ( संस्कृत में प्राचीन नाम दरिद्रेरक ) के चौहान राजा झेवर इनके पिता और बाछल इनकी माता थी । विभिन्न इतिहासकारों ने इनका समय 8 वीं से 11वीं शताब्दी माना है । जनश्रुतियों में इन्हें गोरखनाथ का शिष्य कहा गया है एवं कण्हपा से भी जोड़ा गया है ।
गोगा चौहान सुप्रसिद्ध लोक - देवता के रूप में लोक - मानस में गहराई से पैठे हुए हैं । जाति एवं सम्प्रदाय - विभेदों से परे समस्त भारत में इस नागों के देवता की गोगा नवमी ( भाद्रपद कृष्णा नवमी , भादपद्र शुक्ला नवमी ' को श्रद्धा - सहित पूजा - अर्चना होती है । राजस्थान के बीकानेर संभाग की नोहर तहसील के गोगामेड़ी स्थान पर हर वर्ष पूरे महिने भर इनका ( श्रावण शुक्ला 15 से भाद्रपद शुक्ला 15 तक ) मेला भरता है । धार्मिक - सामाजिक एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का इस अवसर पर अद्भुत दृश्य देखते ही बनता है । ददरेड़ा या ददरेवा ( संस्कृत में प्राचीन नाम दरिद्रेरक ) के चौहान राजा झेवर इनके पिता और बाछल इनकी माता थी । विभिन्न इतिहासकारों ने इनका समय 8 वीं से 11वीं शताब्दी माना है । जनश्रुतियों में इन्हें गोरखनाथ का शिष्य कहा गया है एवं कण्हपा से भी जोड़ा गया है ।