20 . राठौड़ जोपसी : श्रीजलन्धरनाथ द्वारा राठौड़ जोपसी को दिये गये ‘ परचे ' का विवरण म . मानसिंह ने ‘ जलन्धर चन्द्रोदय में इस भांति दिया है -
श्रेष्ठ कंचनगिरि की ओर एक राठीड़ जीपसी रहता था । उसके नाथजी की पृजा थी , जिसे वह पूर्ण तन्मयता से सम्पन्न करता था । एक परदेशी भाट ने महानगर जालोर में आकर अपने कार्य की सिद्धि - हेतु ( स्वार्थ - वश ) पूछा कि ' इयर कोई द्रव्य – दाता है क्या ? में आवश्यक कार्यवशातू धन का जरूरतमंद हूँ । ' ( ऐसासुनकर ) एक दुष्ट ने उपहास किया कि ‘ ( हाँ ) , इधर एक राठौड़ दातार ( अवश्य ) है । वह ( तुम्हें जरूर ) लाख पसाव देगा । उसका घर एक नाथ ( भक्त ) का घर है । अथवा वह नाथजी का ही घर है । उसके यहाँ झोले में , त्रिलोक में उपलब्ध समस्त सिद्धियाँ प्रदान करने वाली , विभूति है । । ( यह सुनकर ) परदेशी भाट राठौड़ ( जोपसी ) के यहाँ आया । दुष्ट जन के ( उपहास से अनभिज्ञ ) उसने जोपसी की ( सर्वप्रथम ) सराहना की और कहा कि एक ने ( दुष्ट जन ने ) मुझे तुम्हारे पास ( अपनी कार्य - सिद्धि हेतु ) आने के लिए कहा है । ( फिर उसने जोपसी के आगे अपना मंतव्य प्रकट किया । इस पर जोपसी ने नाथ का स्मरण किया । ) दुष्ट के द्वारा उपहास में कही गई बात को भी निभा जाने वाले नाथजी ने दर्शन दिये अथवा जोपसी ने दर्शन करवाये । उसने भाट का कार्य साधा और दर्शन भी किये । राठौड़ ( जोपसी ) को चिंता हुई कि ( एक ) लाख की रकम मेरे कहाँ से आयेगी ? ( फिर सोचा ) नाथजी ही मेरी रक्षा करेंगे , वे ही हमारे सच्चे स्वामी हैं । कमध ( राठौड़ जोपसी ) खेत में हल चला रहा था कि इतने में वहाँ एक योगी आ निकले । जोपसी ने उन्हें प्रणाम किया , उनके दर्शन किये । भक्त के ( श्रद्धायुक्त आतिथ्य से ) वशीभूत हो योगेश्वर ने पानी पीया और थोड़ा भोजन भी ग्रहण किया । फिर ( सहज ही ) लीला दिखाते हुए दो या तीन बार हल चलाया । हल चलाकर , जोपसी को आशीष देकर गुरु ( योगी ) अंतर्ध्यान हो गये और यह कहते हुए गये कि इन्हें ( मेरे चलाये गये हल से उपजे ज्वार के सिट्टों को ) संभाल कर रखना । दीपावली के दिन जोपसी ने ज्यों ही ( ज्वार के ) भरे हुए सिट्टे खोले कि त्यों ही आपने ( नाथजी ने ) उस राठौड़ का मनोरथ सिद्ध कर दिया । राठौड़ जोपसी ने उस याचक भाट को अपनी जमीन गिरवी रखकर एक लाख की रकम दी थी और गुरु ( नाथजी ) कृपा से ( इतनी बड़ी रकम देकर ) खेल की भाँति ( सहजता से ) यश कमा लिया था । उस ( उधार ) रकम को लेनदारों को लौटाने की छः मास की अवधि थी कि वे लेनदार उसके ( जोपसी के ) पास ( उस दिन ) प्रातःकाल ही आ पहुँचे । | उस दिन दीपावली थी । नाथजी के सेवक - शिरोमणि राठौड़ ( जोपसी ) ने ( ज्वार । के ) सिट्टे खोले । ( सिट्टे खोलते ही उसने स्वयं को धन्य माना और सिद्धेश्वर नाथजी के प्रताप का बखान किया । जिनके शीश पर करुणामय ( श्रीजलन्धरनाथ के वरद हस्त ) हैं , ऐसे नाच - सेवक के किस बात की कमी ? ( ज्वार के सिट्टों से ) महामूल्यवान मोती निकले , मानो श्वेत कमल खिले हों । वे ( मोती ) थे तो सफेद ही , परन्तु उनमें श्रीजलन्धरनाथ की कृपा की ललाई की झांई ( भी ) थी । जोपसी ने । ( एक ) लाख की रकम गिनकर विप्नों को चुका दी और अपनी ( गिरवी रखी ) जमीन छुड़ा ली
इस तरह यतिनाथ के प्रताप से दरिद्र भी धनाढ्य हो गये । अतः समस्त * भक्त - जन ऐसे ( दयालु ) नाथजी की भक्ति निश्चित होकर करें । ' यह घटना चौहान - शासक कानड़दे के समय में घटी । कानड़दे ने ही भाट को । परिहास करते हुए जोपसी के पास उनके गाँव बालवाड़ा ( जिला जालोर ) भेजा - ऐसा सेवग दौलतराम ने जलंधरगुणरूपक ' में लिखा है । गॉव धाणसा ( जिला जालोर ) के राव जयसिंह ने इस घटना का समय सं . 1389 , आषाढ़ शुक्ला 6 बतलाया है । | श्री जलंधरनाथ द्वारा राठौड़ जोपसी को दिये गये ‘ परचे ' का उल्लेख म . मानसिंह कृत नाथ चरित्र , ताराचंद व्यास कृत नाथानंद प्रकाशिका , सेवग दौलतराम कृत जलंधर गुणरूपक , बगीराम कृत जलंधर जसभूषण , चारण चैनिया कृत जलंधरनाथ स्तुति , सबळा लाळस कृत निसांणी एवं अन्य में हुआ
श्रेष्ठ कंचनगिरि की ओर एक राठीड़ जीपसी रहता था । उसके नाथजी की पृजा थी , जिसे वह पूर्ण तन्मयता से सम्पन्न करता था । एक परदेशी भाट ने महानगर जालोर में आकर अपने कार्य की सिद्धि - हेतु ( स्वार्थ - वश ) पूछा कि ' इयर कोई द्रव्य – दाता है क्या ? में आवश्यक कार्यवशातू धन का जरूरतमंद हूँ । ' ( ऐसासुनकर ) एक दुष्ट ने उपहास किया कि ‘ ( हाँ ) , इधर एक राठौड़ दातार ( अवश्य ) है । वह ( तुम्हें जरूर ) लाख पसाव देगा । उसका घर एक नाथ ( भक्त ) का घर है । अथवा वह नाथजी का ही घर है । उसके यहाँ झोले में , त्रिलोक में उपलब्ध समस्त सिद्धियाँ प्रदान करने वाली , विभूति है । । ( यह सुनकर ) परदेशी भाट राठौड़ ( जोपसी ) के यहाँ आया । दुष्ट जन के ( उपहास से अनभिज्ञ ) उसने जोपसी की ( सर्वप्रथम ) सराहना की और कहा कि एक ने ( दुष्ट जन ने ) मुझे तुम्हारे पास ( अपनी कार्य - सिद्धि हेतु ) आने के लिए कहा है । ( फिर उसने जोपसी के आगे अपना मंतव्य प्रकट किया । इस पर जोपसी ने नाथ का स्मरण किया । ) दुष्ट के द्वारा उपहास में कही गई बात को भी निभा जाने वाले नाथजी ने दर्शन दिये अथवा जोपसी ने दर्शन करवाये । उसने भाट का कार्य साधा और दर्शन भी किये । राठौड़ ( जोपसी ) को चिंता हुई कि ( एक ) लाख की रकम मेरे कहाँ से आयेगी ? ( फिर सोचा ) नाथजी ही मेरी रक्षा करेंगे , वे ही हमारे सच्चे स्वामी हैं । कमध ( राठौड़ जोपसी ) खेत में हल चला रहा था कि इतने में वहाँ एक योगी आ निकले । जोपसी ने उन्हें प्रणाम किया , उनके दर्शन किये । भक्त के ( श्रद्धायुक्त आतिथ्य से ) वशीभूत हो योगेश्वर ने पानी पीया और थोड़ा भोजन भी ग्रहण किया । फिर ( सहज ही ) लीला दिखाते हुए दो या तीन बार हल चलाया । हल चलाकर , जोपसी को आशीष देकर गुरु ( योगी ) अंतर्ध्यान हो गये और यह कहते हुए गये कि इन्हें ( मेरे चलाये गये हल से उपजे ज्वार के सिट्टों को ) संभाल कर रखना । दीपावली के दिन जोपसी ने ज्यों ही ( ज्वार के ) भरे हुए सिट्टे खोले कि त्यों ही आपने ( नाथजी ने ) उस राठौड़ का मनोरथ सिद्ध कर दिया । राठौड़ जोपसी ने उस याचक भाट को अपनी जमीन गिरवी रखकर एक लाख की रकम दी थी और गुरु ( नाथजी ) कृपा से ( इतनी बड़ी रकम देकर ) खेल की भाँति ( सहजता से ) यश कमा लिया था । उस ( उधार ) रकम को लेनदारों को लौटाने की छः मास की अवधि थी कि वे लेनदार उसके ( जोपसी के ) पास ( उस दिन ) प्रातःकाल ही आ पहुँचे । | उस दिन दीपावली थी । नाथजी के सेवक - शिरोमणि राठौड़ ( जोपसी ) ने ( ज्वार । के ) सिट्टे खोले । ( सिट्टे खोलते ही उसने स्वयं को धन्य माना और सिद्धेश्वर नाथजी के प्रताप का बखान किया । जिनके शीश पर करुणामय ( श्रीजलन्धरनाथ के वरद हस्त ) हैं , ऐसे नाच - सेवक के किस बात की कमी ? ( ज्वार के सिट्टों से ) महामूल्यवान मोती निकले , मानो श्वेत कमल खिले हों । वे ( मोती ) थे तो सफेद ही , परन्तु उनमें श्रीजलन्धरनाथ की कृपा की ललाई की झांई ( भी ) थी । जोपसी ने । ( एक ) लाख की रकम गिनकर विप्नों को चुका दी और अपनी ( गिरवी रखी ) जमीन छुड़ा ली
इस तरह यतिनाथ के प्रताप से दरिद्र भी धनाढ्य हो गये । अतः समस्त * भक्त - जन ऐसे ( दयालु ) नाथजी की भक्ति निश्चित होकर करें । ' यह घटना चौहान - शासक कानड़दे के समय में घटी । कानड़दे ने ही भाट को । परिहास करते हुए जोपसी के पास उनके गाँव बालवाड़ा ( जिला जालोर ) भेजा - ऐसा सेवग दौलतराम ने जलंधरगुणरूपक ' में लिखा है । गॉव धाणसा ( जिला जालोर ) के राव जयसिंह ने इस घटना का समय सं . 1389 , आषाढ़ शुक्ला 6 बतलाया है । | श्री जलंधरनाथ द्वारा राठौड़ जोपसी को दिये गये ‘ परचे ' का उल्लेख म . मानसिंह कृत नाथ चरित्र , ताराचंद व्यास कृत नाथानंद प्रकाशिका , सेवग दौलतराम कृत जलंधर गुणरूपक , बगीराम कृत जलंधर जसभूषण , चारण चैनिया कृत जलंधरनाथ स्तुति , सबळा लाळस कृत निसांणी एवं अन्य में हुआ