भंवर गुफ़ा के पाग्रन मे बाइ ओर 2 1/4 उची कुर्सी पर लगभग15''×24" सिरे मन्दिर लंबा - चौड़ा संगमरमर का समाधि - स्थल बना हुआ है ।
चार खम्भों पर इसकी छत टिकी है और चारों ओर से खुला है ।
इसके खंभे और मेहराब अत्यन्त कलात्मक । यहाँ समाधियाँ एक - दूसरे से सटी हुई हैं , जिन पर संगमरमर लगाकर एक चबूतरे का रूप दिया गया है ।
एक कोने पर सर्वप्रथम श्रीसुआनाथजी की समाधि है ,
जिस पर संगमरमर का बना एक तोता है और छोटा - सा शिवलिंग । सबसे प्राचीन और प्रथम समाधि आपकी ही है - ऐसा परम्परा से ज्ञात होता है ।
फिर सर्वश्री भवानीनाथजी , भैलँनाथजी , हंसनाथजी , फूलनाथजी , सेवानाथजी , पूर्णनाथजी , केसरनाथजी एवं भोलानाथजी की समाधियाँ हैं । श्री केसरनाथजी एवं श्री भोलानाथजी की समाधियों पर बनी संगमरमर की छतरियों में आप दोनों की पद्मासन - मुद्रा में मनोहर मूर्तियाँ हैं । |
इस समाधि - स्थल के पश्चिम में आई हुई दीवार पर इन समाधियों से सम्बन्धित यह लेख संगमरमर की पट्टिका पर उत्कील है पंक्ति
1 . श्री जालन्धरनाथजी सहाय छै ॐ शिवगोरक्षनाथाय नमः $ । ।
2 . समाधियाँ ( 1 ) श्री 108 सुआनाथजी महाराज वि . सम्वत 1760 में
( 2 ) श्री 108 भवानीनाथ ।
3 . जी महाराज वि . संवत् 1910 ( 3 ) श्री 108 भैरूनाथजी महाराज वि . संवत् 1963 असाढ़ वदी 2 ( 4 ) 4 . श्री 108 हंसनाथजी महाराज वि . सं . 1961 ?
( 5 ) श्री भैरूनाथजी के शिष्य फूलनाथजी के 5 . शिष्य सेवानाथजी महाराज वि . सं . 1987
( 6 ) श्री 108 पूरणनाथजी महाराज वि . सं . 2006 6 . रा आसोज सुदि 15
( 7 ) श्री 108 हरिनाथजी महाराज वि . सं . 1997 ( 8 ) श्री 108 पूरणनाथ 7 . जी महाराज के शिष्य श्री 108 केसरनाथजी महाराज वि . सं . 2017 रा जैट सुदी 15 । 8 .
( 9 ) श्री 108 भोलेनाथजी महाराज वि . सं . 2025 रा आसोज सुदी
9 . जिर्णोद्धार कार्य वि . संवत् 2041 में श्री 108 श्री शान्तिनाथ जी महाराज द्वारा सम्पन्न 10 . करवाया गया ( । ) समाधियों के इस चबूतरे से सटा हुआ विशाल सत्संग - स्थान है । यहाँ भाविक श्रीनाथजी के वचनामृत का पान करते हैं । एक तरह से यह नाथजी की बैठक ही है ।
चार खम्भों पर इसकी छत टिकी है और चारों ओर से खुला है ।
इसके खंभे और मेहराब अत्यन्त कलात्मक । यहाँ समाधियाँ एक - दूसरे से सटी हुई हैं , जिन पर संगमरमर लगाकर एक चबूतरे का रूप दिया गया है ।
एक कोने पर सर्वप्रथम श्रीसुआनाथजी की समाधि है ,
जिस पर संगमरमर का बना एक तोता है और छोटा - सा शिवलिंग । सबसे प्राचीन और प्रथम समाधि आपकी ही है - ऐसा परम्परा से ज्ञात होता है ।
फिर सर्वश्री भवानीनाथजी , भैलँनाथजी , हंसनाथजी , फूलनाथजी , सेवानाथजी , पूर्णनाथजी , केसरनाथजी एवं भोलानाथजी की समाधियाँ हैं । श्री केसरनाथजी एवं श्री भोलानाथजी की समाधियों पर बनी संगमरमर की छतरियों में आप दोनों की पद्मासन - मुद्रा में मनोहर मूर्तियाँ हैं । |
इस समाधि - स्थल के पश्चिम में आई हुई दीवार पर इन समाधियों से सम्बन्धित यह लेख संगमरमर की पट्टिका पर उत्कील है पंक्ति
1 . श्री जालन्धरनाथजी सहाय छै ॐ शिवगोरक्षनाथाय नमः $ । ।
2 . समाधियाँ ( 1 ) श्री 108 सुआनाथजी महाराज वि . सम्वत 1760 में
( 2 ) श्री 108 भवानीनाथ ।
3 . जी महाराज वि . संवत् 1910 ( 3 ) श्री 108 भैरूनाथजी महाराज वि . संवत् 1963 असाढ़ वदी 2 ( 4 ) 4 . श्री 108 हंसनाथजी महाराज वि . सं . 1961 ?
( 5 ) श्री भैरूनाथजी के शिष्य फूलनाथजी के 5 . शिष्य सेवानाथजी महाराज वि . सं . 1987
( 6 ) श्री 108 पूरणनाथजी महाराज वि . सं . 2006 6 . रा आसोज सुदि 15
( 7 ) श्री 108 हरिनाथजी महाराज वि . सं . 1997 ( 8 ) श्री 108 पूरणनाथ 7 . जी महाराज के शिष्य श्री 108 केसरनाथजी महाराज वि . सं . 2017 रा जैट सुदी 15 । 8 .
( 9 ) श्री 108 भोलेनाथजी महाराज वि . सं . 2025 रा आसोज सुदी
9 . जिर्णोद्धार कार्य वि . संवत् 2041 में श्री 108 श्री शान्तिनाथ जी महाराज द्वारा सम्पन्न 10 . करवाया गया ( । ) समाधियों के इस चबूतरे से सटा हुआ विशाल सत्संग - स्थान है । यहाँ भाविक श्रीनाथजी के वचनामृत का पान करते हैं । एक तरह से यह नाथजी की बैठक ही है ।