मानसरोवर : सिरे मन्दिर निर्माण के साथ - साथ जल की सुविधा हेतु इस सरोवर को भी खुदवाया और बैंधवाया गया । म , मानसिंह द्वारा निर्मित इस सरोवर का नामकरण ‘ मानसरोवर ' उन्हीं के नाम पर किया गया । । परकोटे के बाहर उत्तर दिशा में यह विशाल आयताकार ( 81 ' x 100 ' ) गहरा सरोवर आया हुआ है । इसके चारों पट्टे ( दीवारें ) पत्थरों से मजबूत बँधवाये गए हैं । । इसकी दक्षिणी दीवार के मध्य भूमि सतह से नीचे एक पर एक क्रमबद्ध तीन द्वार हैं , जो इसकी गहराई द्योतित करते हैं । इसी दीवार के पूर्वी कोने में भी तीन दरवाजे इसी रूप में हैं , जिनमें प्रवेश के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं । इनसे तल तक सफाई इत्यादि का कार्य करने के लिए नीचे उतरा जा सकता है । इस सरोवर में जल का आगमन भी आसपास से इन सीढ़ियों से होकर ही होता है । । यहीं श्री दरियावनाथजी महाराज की ग्रेनाइट लगी सुन्दर समाधि है , जिस पर यह शिलालेख अंकित है पंक्ति 1 . श्री 1008 श्री अमरनाथजी महाराज 2 . के शिष्य श्री दरीयावनाथजी महाराज 3 . की समाधि सं . 2047 रा काती वद 3 गुरुवार 4 . दिनांक 18 . 10 . 90 ( । ) इसके पश्चिमी कोने पर रसोईघर संख्या 2 आया हुआ है । इसके पास एक कुआ भी है , जिसमें जल - आपूर्ति मानसरोवर से ही होती है । मानसरोवर में पानी निरन्तर बना रहता है । नितान्त अनावृष्टि की विकट परिस्थितियों में एक बार सूख जाने पर श्रीभैलँनाथजी ने गंगा का आह्वान कर उसे यहाँ अवतरित किया था । सरोवर के आसपास छोटा - सा मैदान है । वृक्षों के झुरमु से आणदित मैदान और उससे घिरा हुआ यह सरोवर अत्यन्त मनोहारी दृश्य उपस्थिति करता है , विशेषकर वर्षा ऋतु में । कवि इसका छवि - वर्णन प्रस्तुत करता हुआ लिखता है - सुन्दर जहां छवि भरथी मानसर । निर्मित नयौ नृपति जल निर्भर । । सीतल मधुर सुस्वाद सुगंधित । अमल पुष्प द्रुम वेल आवरित । । शस्य श्यामल हरीमिता से आच्छादित यह मानसरोवर सौभाग्यशाली विहंगों के । लिए साक्षात् नारायण पर्वत है । कवि बगीराम भावाभिभूत होकर लिखता है