21 . बाहड़ , 22 , बीजल : । अपनी ‘ जलंघरगुणरूपक ' कृति में सेवग दौलतराम ने ‘ प्रोहत बाहड़ वीजल ने वर दे राव सलखा नै दली सु लाया सो वर्णन ' प्रस्तुत किया है । प्रारंभिक छंदों में कवि ने खेड़ ( तत्समय का महेवा प्रांत , जो बाद में मालानी कहलाया ) के शासक राय सलखा की वीरता एवं नाथजी के गुणों का बखान किया है । फिर एक समय दिल्लीपति बादशाह से राव सलखा का घमासान युद्ध हुआ । ' ' पेशकसी ठहराने के सम्बन्ध में दोनों में बातचीत हुई , तो बादशाह ने राव सलखा को कैद कर लिया - | पहती आप दली असुरांपत । सलखी बंद लियां नृप सांप्रत । । कोट लाल वेसण कमंधन । करै रोक सारे आपण कज । । 85 । । । फिर सबने मंत्रणा कर पराक्रमी वीर बोहड़ तथा वीजल पुरोहित को यह भार , जो उन्होने स्वीकार किया । फिर वे दिल्ली के मार्ग में पढ़ने वाले जालंधर - पीठ निवाई आये और श्रीनाथ की कृपा - हेतु तपस्या की , । दोनों ने श्रीजलंधरनाथ से सारी बात कही और वर मांगा कि राव सलखा को बादशाह की कैद से मुक्त कराया जाय । श्रीजलंधरनाथ ने ' तथास्तु ' कहा और उपाय बताया कि योगी का वेश धारण कर , बादशाह को वीणा बजाकर रिझाना तथा पुरस्कार में सलखा को माँग लेना । तुम्हें बादशाह सौंप देगा । ' | इससे आगे की श्रीजलंधरनाथ की चमत्कार - लीला का रसास्वादन पाठक कवि के शब्दों से ही करें -
वड जलंधेस प्रताप घणै वर । धन लखौ प्रतपे धर मुरघर । । । वसधा पर जस क्रीत वधारी । इल सारी डिगतां आधारी । । 207 । । । करै नाथ जिसड़ी ही कीधी । दुनियां नाथ अडर धर दीधी । । पार न को महमा ज्यां पांमै । करता पुरस जोड सुभ कांमै । । 208 । । । नाथां नवां विचै नर नारी । सिध जलंघृस वदै इल सारी । । द्वादस पंथ विचा सिध दणियर । मयनक सिख भवन त्रण मिणधर । । 209 । । । रैणा नाथ जुगां कथ राखी । ससि अर सूर बिहुं कर साखी । । बाहड बिजल प्रसन होए बाये । तद होए प्रसंन राखियां ताबै । । 210 । । । ‘ मुंहता नैणसी री ख्यात ' में भी इस घटना का उल्लेख आया है , परन्तु तनिक परिवर्तन के साथ । यह लड़ाई गुजरात के बादशाह की सेना से सलखा के पिता राव तीडा के समय में हुई , जिसमें राव तीडा मारे गये और सलखा कैद हुए । पुरोहित बाहड़ और बिजड़ ने योगी - वेश धारण कर वीणा बजाई , बादशाह को रिझाया और सलखा को कैद - मुक्त कराया ।
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