26 . राव मालदेव , 27 . राव रत्नसिंह : ' श्रीनाथतीर्थावलीस्तोत्र ' कार ने लिखा है कि इसी प्रकार राठौड़ - वंश के महान् तपस्वी मालदेव और महान् तेजस्वी राव रत्न - दोनों ने ( भी ) वर प्राप्त किया । । 18 । । | मारवाड़ का महान् वीर तथा महत्त्वाकांक्षी महाराजा मालदेव जब वि . सं . 1589 , आषाढ़ वदि 2 ( 21 मई , 1532 ई . ) को गद्दी पर बैठा , उस समय उसके अधिकार में केवल जोधपुर और सोजत के दो परगने ही थे । वि . सं . 1619 , कार्तिक सुदी 12 ( 7 नवम्बर , 1562 ई . ) को जब वह मरा , तो उसके अधिकार में 52 परगने थे । उसका कुछ समय के लिये जालोर पर भी अधिकार रहा । श्रीजलन्धरनाथ के राव मालदेव पर अनुग्रह के विषय में प्रारम्भ के उपर्युक्त कथन के अतिरिक्त अन्य स्रोत मौन हैं । हॉ , सिरे मन्दिर पर तपस्या - लीन श्री वडनाथजी का इन्हें आशीर्वाद अवश्य मिला - ‘ पछै राव मालजी उटै आया तरै परसन हुआ । | सिरे मन्दिर स्थित श्री रलेश्वर महादेव के प्रतिष्ठापक राव रत्नसिंह महेसदासोत पर श्री जलन्धरनाथ की कृपा का सविस्तर वर्णन इसी पुस्तक में पहले । ‘ रत्नेश्वर महादेव ' - प्रसंग में किया गया है ।
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