🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

28 . चारण भीम

28 . चारण भीम : म . मानसिंह नाथ - भक्त भीमा चारण का उद्धार प्रसंग ' प्रस्तुत करते हुए ‘ जलन्धर चन्द्रोदय ' में लिखते हैं - “ चारण जाति के परम पवित्र आसिया वंश के एक कुलीन ) घर में भीम सरीखे नाथजी के सेवक प्रकट हुए । वह अनुपम भामा

चारण भांडियावास गाँव में पैदा हुआ । ( संसार - सागर से ) पार उतारने में समर्थ नाथजी का वह भक्त था । वह या स्वरूप ही था । रात - दिन वह नाथजी की | आराधना करता था । ( ऐसी अहर्निश भक्ति से प्रसन्न होकर ) यतिराय श्रीजलंधीपाव • ने कृपा कर उसे शीघ्र ही अटल भक्ति प्रदान की । । उधर सोनाणा ( नामक ) गाँव हैं , जहाँ ( उसे ) यति ( राज ) जालंधर मिले । उन्होंने भीम पर अतीव कृपा दाति हुए उससे वहाँ ( सोनाणा में ) अपने चरण स्थापित करवाये । । ( एक बार ) भीम उदयपुर गया । उसने महाराणा से विनती की कि मेरे अतिथि बनकर आप मेरे घर भोजन कीजिये । दो - एक दुष्ट वहाँ खड़े थे । उन्होंने ) तत्काल तर्क किया कि इनके ( महाराणा के साथ ( एक ) लाख फौज होगी । तुम क्या करोगे ? इसमें कोई चाल तो नहीं ? । इधर श्रीजालंध्र , जो सबके सिरमौर हैं , के प्रताप से ( भीम ने ) स्वादिष्ट भोजन की तैयारी की और महाराणा को ( अपने ) स्थान पर ले आया । वहाँ शिव ( एकलिंग ) के पुजारी ने महाराणा से प्रार्थना की कि ( एक ) चारण के घर क्या पधारते हैं ? आप नरेश हैं ; समझ लें । तब नाथजी के सेवक ( भीम ) ने कहा कि हे भोले शंभु । पुजारी , यदि आपके शंभु ( एकलिंग ) भोग स्वीकार कर लें , तब तो सच मानेंगे । । तब डाह से ऐंठे हुए ये वे लोग महाराणा को राजभवन ले गये । स्वादिष्ट रसोई तैयार हुई और प्रेम से थाल परोसे गये । नाथजी की आज्ञा त्रिपुर में व्याप्त है , उसमें अटकाव नहीं । पुजारी की परूसी रसोई को धारण कर , एकलिंग भीम द्वारा परूसी रसोई को अरोग गये । ब्राह्मण ( पुजारी ) की रसोई धरी ही रही । इससे महाराणा को असीम प्रसन्नता हुई । श्रीजलंधरनाथ के प्रताप से लाखों की फौज भोजन कर गई । ( इस अवसर पर हाथ - मुँह धोने आदि कार्यों में इतना पानी फैला कि ) जल से पृथ्वी पर हुए कीचड़ में ( महाराणा के साथ आये ) हाथी अटक गये । अन्य चारणों के घरों ने तो राजाओं से लाखों लिये , परन्तु मुद्राधारी ( श्रीजलंधरनाथ ) के प्रताप से इस ( चारण के घर ) ने राजा को लाखों दिये । ' जब तक तुम स्वयं भोजन न लोगे , तब तक ( इस पात्र में ) अगणित लोगों के भाजन कराने पर भी खाद्यान्न समाप्त नहीं होगा ' - नाथजी ने ऐसा अविचल वर दिया । इस ( वर ) के प्रताप से भीम ने लोगों को सदैव भोजन कराकर ) यश E F F कमाया । महाराणा प्रमुदित होकर अपने राजभवन लौट गये । भीम के हदय में आनंद गया । जब तक वह ( भीम ) जीवित रहा , उसने खुब यश कमाया । और अंत में यजा में लीन हो गया । ( श्रीजलंधरनाथ द्वारा प्रदत्त ) उस कृपा - पात्र में अब तक र घर में नाथजी के प्रताप से यह कृपा बनी हुई है ( अर्थात् उस पात्र में
खाद्यान्न कम नहीं होता ) । उसी वश में ) बांकीदास नाथजी का सेवक है , जो महाविद्यावान खेने से विश्ववंद्य है । जिन घरों पर ( नाथजी की कृपा हुई , उन घरों पर ( उनकी ) का सदैव बनी । हे नाथजी की ऐसी कीर्ति सत्य है । प्रभु श्री जलन्धरनाथ धन्य हैं । '

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