🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

33 . चारण सबळा लाळस :

33 . चारण सबळा लाळस : । म . मानसिंह ‘ जलंधर चंद्रोदय ' में लिखते हैं कि “ चारणों की लाळस शाखा में सबळा ( सबळदान ) प्रसिद्ध है । उसे यति जलंघ्र मिले , वह वर्णन करता हूँ । कैरली गाँव में नाडी के पास श्रीजलंधर सदैव निवास करते हैं । एक दिन सबळा खेत में गया । वह मूक ( गंगा ) था । चाहने पर भी बोल नहीं सकता था । इतने में योगी - वेशधारी श्रीजलंधरनाथ पधारे और सबळा से आगे जाने का मार्ग पूछा । सबळा मूक होने से बोला नहीं । श्रीजलंधरनाथ ने फिर पूछा , तो सबळा ने मुख से तो कुछ उच्चारण नहीं किया ; परन्तु हाथ से उसने मार्ग बताने की चेष्टा की । तीसरी बार नाथजी फिर बोले कि मुँह से बोल , जीभ क्यों नहीं खोलता ? श्रीजालंधरनाथ के अमोध वचनों से वह बोलने लगा और प्रथम बार में ही छंदों में श्रीनाथ - गुणानुवाद करने लगा । वह बोला , ' आदरणीय , आप घूमकर इस मार्ग से पधारें । ' यतिवर तब प्रसन्न हो गये । उन्होंने सबळा को निज भक्ति देकर अपना लिया । | उस सवळा ने विस्तार से नाथ - गुणगान किया कि श्री जलंध्रनाथ ही हमारे नरेश हैं ( स्वामी हैं ) । नाथ - भक्ति को अपने चित्त में धारण किया हुआ उसका पुत्र अपनी जाति में इस समय विख्यात है । जब हम ( जालोर से ) जोधपुर आये , तब तक वह भक्त जीवित था । फिर सद्गति को प्राप्त कर नाथ - लीन हो गया , एकाकार हो गया । । श्री ( जलंधर ) नाथ का दर्शन अमोघ है , सायुज्य मुक्ति - प्रदाता है । जैसा मैंने अनुभव किया , आँखों से देखा , उस परिचय का इस प्रकार ( अपने ) विवेक से । वर्णन किया है । . मोहनलाल जिज्ञास द्वारा प्रस्तुत सबळदान के परिचय में भी यह वृत्तान्त आया है । उन्होंने लिखा है कि ये ( सपळदान ) लाळस शाखा में उत्पन्न हुए थे और जोधपुर राज्यान्तर्गत पचपदरा परगने के गांव खनोड़ा के निवासी थे । महाराजा बखतसिंह इनके समकालीन थे । इनके पिता का देहान्त बाल्यावस्था में हो गया था । ये जन्म से ही मूक थे ; अतः इनका जीवन एक गूंगे तथा पागल व्यक्ति के समान व्यतीत होने लगा । कहते हैं , जंगल में गायें चराते समय एक साधु को पानी पिलाने से इनका गला खुल गया और इन्हें ज्ञान हो आया । ज्ञानावस्था में सबळदान काव्य - क्षेत्र की ओर प्रवृत्त हुए । पोकरण के ठाकुर देवीसिंह की इन पर विशेष कृपा थी । इन्होंने ‘ झमाल ठाकुरा देवीसिंह पोकरण री ' नामक एक रचना लिखी । इसके अतिरिक्त कतिपय फुटकर गीत भी मिलते हैं ।

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