🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

शिव स्वरूपी गुरुहरि श्री पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के 82 वे अवतरण दिवस पर गुरु चरणों में शत शत वंदन

शिव स्वरूपी गुरुहरि श्री पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के 82 वे अवतरण दिवस पर गुरु चरणों में शत शत वंदन

जन्मदिवस विशेष :-

शुभ दिवस 19 जनवरी 1940 सोमवार माघ अंधारी पांचम विक्रम सवंत 1996 राठौड़ जोरावत कुळ में पिता रावत सिंह ओर माता सिणगार कंवर के घर में पीरजी बावसी का जन्म हुआ, जिनका नाम रखा ओट सिंह राठौड़, वो आज पीरजी बावसी के नाम से जग प्रसिद्ध है ।

पीरजी बावसी श्री शान्तिनाथजी महाराज भगवान शिव के अवतार माने जाते है, बावसी ने हमारे गाँव भागली गाँव में जन्म लिया ये हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है, और उनके माता-पिता के अच्छे कर्मो का फल है । 

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के माता-पिता द्वारा पूर्व जन्म में की हुई अच्छी कमाई थी, जो उन्हें इस जन्म में ओटसिंह के रूप में मिली, जो स्वयं महादेव ने उनके घर आकर जन्म लिया और परचा दिया ।

बाल्यावस्था से ही यह बालक अपनी सामान्य दिनचर्या से असामान्य विलक्षण कार्य करने से हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता था, चार भाइयों ओर दो बहनों में समसे छोटे होने के कारण ओट सिंह सबके लाडले थे ।

पीरजी बावसी बचपन से ही मिलनसार प्रवर्ति के थे, बालपण में ही उनके बहुत सारे मित्र थे, उन सभी मित्रो मे भूराराम जी उनके खास मित्रों से एक थे, वे साथ में खेलते कूदते और साथ-साथ खेतों में पशु चराने भी जाते थे ।

 पीरजी बावसी छः महीने की अल्प आयु में आँखों से अंधे हो गए थे, शायद यह एक उनकी लीला थी, क्योंकि अगर वो आँखों से अंधे नही होते तो, उनके माता-पिता उनको सिरेमन्दिर जलन्धर नाथजी महाराज के चरणों में नही चढ़ाते ।

क्योकि पीरजी बावसी श्री शान्तिनाथजी महाराज 6 महीने की आयु में अंधे हो गए थे, तो उनके माता- पिता ने श्री जलन्धरनाथजी महाराज से प्रार्थना की, कि अगर हमारा बेटा ठीक हो गया तो, हम इसे सिरेमन्दिर आपके चरणों में समर्पित कर देंगे, और हुआ भी यूँ ही, पीरजी बावसी कम दिनों में ही बिलकुल ठीक हो गए, उनके आँखों की रोशनी वापस आ गई, बावसी को बराबर दिखने लगा ।

 समय निकलता गया पीरजी बावसी धीरे-धीरे हँसते-खेलते बड़े हो रहे थे, देखते ही देखते 9 वर्ष के हो गए, बचपन से ही उनका ज्यादा ध्यान भक्ति भाव में रहता था, उस समय केशर नाथजी महाराज भी भागली में ही तपस्या करते थे, उनके पिताजी केशर नाथजी महाराज की सेवा में जाया करते थे, तो पीरजी बावसी भी साथ में जाया करते थे, और केशर नाथजी बावसी की सेवा किया करते थे ।

एक दिन शुभ समय और शुभ घडी देखकर उनके माता- पिता ने ओट सिंह को केशर नाथजी बावसी के चरणों में समर्पित कर दिया, एक दो दिन वहाँ पर रहे, और फिर भागकर वापस घर आ गए, ऐसा दो-तीन बार हुआ, उनके पिताजी केशर नाथजी बावसी के पास लेकर जाते और वो भागकर फिर घर आ जाते, बोले मुझे बाबा नही बनना है, मै तो यही आपके पास ही रहूँगा, ऐसा कई बार होने पर उनके पिताजी ने सोचा की अभी बच्चा है बड़ा होने पर अपने आप जायेगा ।

एक दो वर्ष ओर बीते बावसी पिताजी के काम - काज में हाथ बटाते, और हम साथ साथ खेतों में गायों को चराने जाते, हम सभी दोस्त मिलकर खेलते कूदते ये हमारी रोज की दिनचर्या थी, दिन कैसे निकले पता ही नही चला, देखते ही देखते पीरजी महाराज 13-14 वर्ष के हो गए, लेकिन सिरेमन्दिर जाने का विचार ही नही कर रहे थे ।

जलन्धर नाथजी का परचा :-

तभी एक दिन :- भूराराम जी ने आगे बताया कि एक दिन हम गायों को चराकर घर आ रहे थे, गुरु पूर्णिमा का दिन था, संयोग वंश उस दिन हम गायों को लेकर सिरेमंदिर, चित्-हरणी की तरफ गए हुए थे, शाम का समय था, हम लोग घर के लिए रवाना हुए, आधे रास्ते तक पहुँचे थे, कि अचानक पिरजी बावसी को दिखना बंद हो गया, उन्होंने मुझे आवाज दी और बोले अरे भूरा मुझे दिख नही रहा है, हम वहीं पर ही बैठ गए, मैने देखा उनकी आँखों को, आँखे ठीक थी लेकिन उन्हें दिख नही रहा था हम वही पर बैठ गए, थोड़ी देर बाद पीरजी बावसी सिरेमन्दिर की तरफ चले तो उन्हें दिखने लगा और वापस गाँव की तरफ मुड़े तो दिखना बंद जाता, पीरजी बावसी ने श्री जलन्धर नाथजी महाराज से प्रार्थना की, बहुत देर तक प्रार्थना करने के बाद फिर हम घर की ओर चले तो उनको बराबर दिखने लगा और हम घर आ गए 

तब उन्होंने निश्चय किया कि कल मुझे सिरेमन्दिर जाना है, ये बात उन्होंने घर पर नही बताई, रात में ही उन्होंने सभा का सन्देश भिजवाया (गोम हाको करायो) कि कल सुबह रावतसिंह के घर सभा है, सभी गाँव वालो को आना है, सुबह होते ही सभी गाँव वाले रावतसिंह के घर आने लगे, रावतसिंह जी जलन्धरनाथजी के मंदिर (गांव की मडी ) में बैठे थे, रावतसिंह जी को मालूम ही नही कि मेरे घर सभा है, सभी लोग उनके घर की ओर जाने लगे तो उन्होंने गांव वालों को पूछा आप लोग कहा जा रहे हो, और आज सभा किसके घर पर है, गाँव वालो ने बोला की आपके घर पर ही तो सभा है, हम सब आपके घर पर ही तो जा रहे है, रावतसिंह जी घर आये तो पता चला की ये सभा तो ओटसिंह ने रखवाई है, फिर बहुत बड़ी सभा हुई, अमल गलिया, जीमण हुआ, और फिर पीरजी महाराज ने सभी से सिरेमन्दिर के लिए विदाई ली, फिर कई वर्षो बाद दीक्षा समारोह (पीरजी बावसी की कटम जात्रा करवाई तब ) में वापस अपने गाँव भागली पधारें थे ।

छोटी उम्र में ही सन्यास पथ का अनुचरण करने वाले इस बालक के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा, यह बालक आगे चलकर जन जन के मन मे ईश्वर का साक्षात प्रतिबिंब और आराध्य बनकर अक्षय एवं निर्वाध शाशन करेगा, श्री जलन्धर नाथजी पीठ सिरेमन्दिर के सिरमौर जालोरी पीर श्री शान्तिनाथजी महाराज के चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम ।

धन्य हो भागली, धन्य हो उनके माता पिता को और धन्य हुए हम सब, जो हमारे गाँव भागली में इतने महान सन्त ने जन्म लिया, हमारा गाँव उनके चरणों की धूल है, और हम उनके चरणों के दास है

गुरुदेव पीरजी बावसी के चरणों मे वन्दन

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