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श्री शांतीनाथजी बावसी ने हमे इतिहास की एक बहुत ही पुरानी सच्ची घटना बताई थी, जो आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ, आप भी जरूर पढे

#इतिहास_का_सच्ची_घटना :-
श्री शांतीनाथजी बावसी ने हमे इतिहास की एक बहुत ही पुरानी सच्ची घटना बताई थी, जो आज में आपके साथ शेयर कर रहा हूँ, आप भी जरूर पढे __ जोरावर सिंह राजपुरोहित
वर्षों पहले की बात है, एक दिन मै  और मेरे मित्र एवं नाथजी भक्त गणपत सिह देवकी सिरेमन्दिर पर दाता की आज्ञा पर रुके हुए थे, रात में नाथजी बावसी के शयन में बैठे बैठे बाते कर रहे थे, और दाता के प्रवचन सुन रहे थे, तभी बातो बातो में नशे की बात निकली तो बावसी ने इतिहास की एक सच्ची बात बताई, मुगलों ने राजपूतो से एक षड्यंत्र के तेहत उन्हे शराबी व मांसाहारी बनाकर बदला लिया था । 

हिन्दू धर्मग्रंथो में कहीं भी नही लिखा है, की देवी देवताओं को शराब या मांस चढ़ाया जाये, हमारे कोई भी धर्मग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना हिन्दुओ का धर्म है, राजपूतो को कमजोर करने का ये सिर्फ़ मुग़लों का षड्यंत्र था ।
जानिये एक अनकही सच्ची ऐतिहासिक घटना... जो आज भी जयपुर, दिल्ली, गोरखपुर व अयोध्या के इतिहासकारों के पास सुरक्षित है ।
"एक षड्यंत्र मांसाहारी बनाने का''
कैसे राजपूतो की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??
एक समय की मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था, हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे, उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की, है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ??
सभा में सन्नाटा सा छा गया, एक बार फिर वही दोहराया गया  ??तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा "है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??
सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया !
वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे, महाराजा रिड़मल जी ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है सबसे बहादुर तो राजपूत है, इस दुनियाँ में !
मुगलो ने तो राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज कायम किया है, कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से ??
बादशाह का मुँह देखने लायक था, ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो !
मुगल बोला बाते मत करो महाराजा रिड़मल, हमे उदाहरण दो वीरता का ??
महाराजा रिड़मलजी ने कहा "क्या कभी किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"
बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही
महाराजा रिड़मल बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने राजपूत वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की !
बादशाह हसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला
इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है, मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा !
महाराजा रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए !
रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के ठाकुरसाहब का ख्याल आया,
रात को ११ बजे ( रोहणी ठिकाना जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत में है ) दो घुड़सवार बुजुर्ग ठाकुरसाहब के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी !
ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये, घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले "जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ, हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता ।
महाराजा रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है, महाराजा ने ठाकुर साहब को बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुनाई !
अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
रोहणी ठाकुर साहब बोले ," बस इतनी सी बात ? मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे, आप दोनों को दिल्ली ले जाओ, दरबार में ये आपकी और राजपूताने की लाज जरूर रखेंगे !
महाराजा रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर..
मान गए राजपूती धर्म को ।
सुबह जल्दी दोनों कुंवर अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे, उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए ?? इस बारे में एक बार में इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ ।
महाराजा रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ? अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को !
एक बार महाराजा रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए !
ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा हमारे दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने के लिए, दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !
ठकुरानी जी ने कहा:- बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है, क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था, लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो ।
दिल्ली के दरबार में उस दिन कुछ विशेष भीड़ थी, लाखो लोग इस दृश्य को देखने के लिए जमा थे ।
बड़े लड़के को मैदान में लाया गया, मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो.. तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?
राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है, लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ??
बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...
२० घुड़सवारों का दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका लेकिन देखते ही देखते बड़े राजकुमार ने उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछा दी, दूसरा दस्ता आगे बढ़ा उसका भी वही हाल हुआ, मुगलो में घबराहट और झुरझरी फेल गयी !
इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई थी ।
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा जहाँपना आपने खामखाँ ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी, आपकी इस परीक्षा में अब और देर मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर... तलवार से ये नही मरेगा ।
कुटिलता, धोखे और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी !
सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा, बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था, ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा, लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली !
उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने छल से उनकी गर्दन काट दी, फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत वो राजपूत मुगलो का काल बनते गया, बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था ।
हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था, बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इसको..।
एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब या मांस छिड़क दो, राजपूत का इष्ट धर्म कमजोर करना हो तो शराब और मांस का उपयोग करो, दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए !
मौलवी ने बादशाह को कहा, हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनके देवी देवता है, और ये राजपूत शराब व मांस से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है !
यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब व मांस की लत लगाओ !
यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे !
उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब व मांस का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपने इष्ट भगवान विष्णु को रुष्ट करते हुए स्वयं कई बनभृष्ट होते चले गए ।
इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा से शाकाहारी थे और भगवान विष्णु के परमभक्त थे क्योकि भगवान ने अपने प्रमुख अवतार राम और कृष्ण इसी कुल मे लिए थे, यदि क्षत्रिय मांसाहारी होते तो भगवान कभी इस वंश को नही चुनते क्षत्रियों के कुल में सदा से राम और कृष्ण की ही पूजा होती रही हैं और इन्ही नामों का जप करके अनेक क्षत्रिय शस्त्र के साथ शास्त्र के ज्ञाता हुए हैं, अनेक क्षत्रिय राजघराने के व्यक्ति महान सन्त, साधु व ऋषि बने हैं जिनकी तपस्या से आज भी समाज निरन्तर भगवत भक्ति एवम् भगवत भक्तों को प्रमुखता से प्रधानता देते हैं क्योकि क्षत्रिय का प्रथम धर्म गाय, साधु सन्तों व ब्राह्मणों की सेवा व रक्षा करना रहा है !
किन्तु मुगलों के मायाजाल मे कुछ स्वार्थी राजपूतों ने आकर मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली और वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे और अपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये और अन्य क्षत्रियों को बहलाकर शराबी मांसाहारी बनाते चले गए ।
#लेखक  :-
#जोरावरसिंह_राजपुरोहित_ठिकाणा_अर्थण्डी
भाइयो ये सच्ची घटना सत्यबात है और समाज को इस मुगलों की दी हुई कुरीति से दूर करना होगा, तब ही हम खोया वैभव पुनः पा सकेंगे और क्षत्रिय राजपूत धर्म व भारत माता की रक्षा कर सकेंगे !
#संग्रहकर्ता :-
#श्री_शान्तिनाथजी_टाईगर_फोर्स_संगठन_भारत