🚩सिरे मंदिर‌ जालोर के सिरमौर पीरजी श्री1008श्री शांतिनाथ जी महाराज की कृपा दृष्टि हमेशा सब पर बनी रहे सा।🚩🌹जय श्री नाथजी महाराज री हुक्म🌹🚩🙏🙏">

पिरजी श्री शांतिनाथजी महाराज साहब के अंतिम क्षणों की यादें दुर्गसिंहजी सोलंकी बालवाड़ा के मुख से.

*सबके नाथजी :-*
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*पिरजी श्री शांतिनाथजी महाराज साहब के अंतिम क्षणों की यादें दुर्गसिंहजी सोलंकी बालवाड़ा के मुख से...*

बात उन दिनों की है जब *"पीरजी श्री शांतिनाथजी महाराज"* आप अपने स्वास्थ्य लाभ हेतू आप उदयपूर पधारे थे। उदयपूर मे स्थित धनाणी ठाकुर साहब के यहाँ आपका विश्राम था। 
उदयपूर मे आपके पधारने की सुचना मिलते ही भक्तगण आपके दर्शन हेतू आने लगें। शाम का वक्त था श्रद्धा से आपके समक्ष भक्तगण बैठे थे। पुरा वातावरण भक्तिमय था। 
आपके दर्शन पाकर लोग खुश थे। हालाँकि आपको शाम मे अस्पताल जाना था किन्तु आपने रात को विश्राम करना व सुबह अस्पताल दिखाने का आदेश दिया। आपके आदेशानुसार सभी ने सहमति दी।

आपके परम भक्त "दुर्गसिंहजी सोलंकी बालवाड़ा" आपके आदेशानुसार आपके साथ आऐ थे। 
आपका दुर्गसिंहजी सोलंकी के साथ गुरु भक्त वाला स्नेही रिश्ता बहुत निराला था। आपके एक आदेश पर दुर्गसिंहजी सोलंकी सिरे मंदिर अवश्य आते थे। दुर्गसिंहजी सोलंकी के देशी भजन आपको बहुत प्रिय थे। अक्षर आप उनके साथ हँसी मजाक कर लेते थे। 

करीब 9:30 बजे का समय था। आप भक्ति मे लीन थे। सभी भक्त आपके सान्निध्य मे बेठे थे। कुछ क्षण पश्चात आपकी नजर आपके परम भक्त दुर्गसिंहजी सोलंकी पर पड़ी, आपने उनके मन के भाव पहचान लिऐ। (दुर्गसिंहजी को भी शायद कुछ आभास हो चुका था)
आप फरमाएं,

आप अपने चिरपरिचित अंदाज मे फरमाएं 
पिरजी - दरगा उदास किकर बेठो है आज?
दुर्गजी - आदेश दाता, हाजिर हूँ, ठीक हूँ सा।
पिरजी - अटे आव, आज थोड़ा चटकला (भक्तिरस के दोहे) सुनाण
दुर्गजी - हुकूम दाता जो आपरो आदेश। 
दुर्ग सिंहजी ने कुछ दोहे प्रस्तुत किऐ कुछ भजन की कड़ीया सुनाई, 
कुछ समय पश्चात दुर्गजी के भजन सुनते सुनते पुनः आप अपनी भक्ति मे लीन हो गऐ। 
बस यह आपकी अंतिम अवस्था थी।

दुर्ग सिहजी, पीरजी महाराज के पास ही बेठे थे। कुछ क्षण मे ही उनको (दुर्गजी) अचानक आपके मुख पर तेज दिखाई दिया। आपकी इस अवस्था को आपके परम भक्त ने पहसान लिया। दुर्गसिंहजी की एकाएक नजरें आपके मुँख पर थी। उस वक्त अलौकिक दर्शय रहा होगा।
और कुछ क्षणों मे ही आप अपनी देह त्याग शिव मे समा गए। आपकी आत्मा परमात्मा से मिल गई। दुर्गसिंहजी की आंखे भर आई अन्य भक्त कुछ समझ ही नही पाऐ। सभी हतप्रभ रह गऐ, श्री निर्मल नाथजी सहित अन्य शिष्य गणों को आप चंद समय मे अकेला कर अपने अंतिम सफर मे चल पड़े।

आपके देवलोकगमन की खबर चंद सेंकेण मे देश विदेश मे फैल गई। लाखों की संख्या मे आपके भक्त आपके अंतिम दर्शन पाने हेतू जालोर प्रस्थान करने लगें।
आपकी देह जालोर अखाड़ा मे बिराजमान की जहाँ लाखों भक्तों ने आपके अंतिम दर्शन किऐ। और आपके आदेशानुसार आपको अपनी चुनी हुई पवित्र भौम सिरे मंदिर पर समाधी दी गई।

आप लाखों भक्तों मे आज भी श्रेद्धय विद्यमान है,अमर है।
जय नाथजी री।।
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